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पाञ्चजन्य भगवान विष्णु का शंख है। विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण पाञ्चजन्य नामक एक शंख रखते थे ऐसा वर्णन महाभारत में प्राप्त होता है। श्रीमद्भगवद्गीता जो कि महाभारत का अङ्ग है उस में वासुदेव द्वारा कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान इसका इस्तेमाल किया जाना बताया गया है।


महाभारत में श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य,अर्जुन के पास देवदत्त,युधिष्ठिर के पास अनंतविजय,भीष्म के पास पोंड्रिक,नकुल के पास सुघोष, सहदेव के पास मणिपुष्पक था। सभी के शंखों का महत्व और शक्ति अलग-अलग थी।

शंखों की शक्ति और चमत्कारों का वर्णन महाभारत और पुराणों में मिलता है।


शंख को विजय,समृद्धि,सुख,शांति, यश, कीर्ति और लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि शंख नाद का प्रतीक है।शंख ध्वनि शुभ मानी गई है।हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं।इनके 3 प्रमुख प्रकार हैं-दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख।


पाञ्चजन्य का रहस्य : पाञ्चजन्य बहुत ही दुर्लभ शंख है। समुद्र मंथन के दौरान इस पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से 6वां रत्न शंख था।
श्रीकृष्ण के गुरुपुत्र पुनरदत्त को एक बार एक दैत्य उठा ले गया। उसी को लेने के लिए वे दैत्य नगरी गए।


वहां उन्होंने देखा कि एक शंख में शंखासुर नाम का दैत्य सोया है।उन्होंने दैत्य को मारकर शंख को अपने पास रखा और फिर जब उन्हें पता चला कि उनका गुरुपुत्र तो यमपुरी चला गया तो वे भी यमपुरी गए।वहां यमदूतों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया तब उन्होंने शंखनाद किया जिसके चलते यमलोक हिलने लगा।
Presenting a small thread on some of our rishis of ancient time.

1. ऋषि वशिष्ठ- ऋषि वशिष्ठ राजा दशरथ के कुलगुरु और चारों पुत्रों श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के गुरु थे। वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने...


...के लिए भेज दिया था। कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था।

2. ऋषि विश्वामित्र- ऋषि बनने से पहले विश्वामित्र एक राजा थे और वे ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय हड़पना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने युद्ध भी किया था, लेकिन वे वशिष्ठ ऋषि से हार गए। इस हार ने ही...


...उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया। विश्वामित्र की तपस्या अप्सरा मेनका ने भंग की थी। विश्वामित्र ने एक नए स्वर्ग की रचना भी कर दी थी। विश्वामित्र ने गायत्री मंत्र की रचना की है जो आज भी सबसे चमत्कारी मंत्र है।

3. ऋषि कण्व- वैदिक काल के ऋषि हैं कण्व। इन्होंने अपने आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला और उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण किया था। भरत के नाम पर ही इस देश का नाम भारत हुआ है। ऋषि कण्व ने लौकिक ज्ञान-विज्ञान और अनिष्ट-निवारण संबंधी असंख्य मंत्र रचे हैं।


4. ऋषि भारद्वाज- वैदिक ऋषियों में भारद्वाज ऋषि का स्थान भी काफी ऊंचा है। भारद्वाज के पिता बृहस्पतिदेव और माता ममता थीं। भारद्वाज ऋषि श्रीराम के जन्म से पहले अवतरित हुए थे, इनकी लंबी आयु का पता इस बात से चलता है कि वनवास के समय श्रीराम इनके आश्रम में गए थे। भारद्वाज ऋषि ने...
✓योगनिद्रा✓
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योगनिद्रा का मतलब होता है अतीन्द्रिय निद्रा । यह वह नींद है जिसमें जागते हुए सोना है । यह निद्रा और जागृति के मध्य की स्थिति है ।
यह हमारी आन्तरिक जागरूकता की स्थिति है । इसमें हम चेतना , अवचेतन मन और उच्च चेतना से सम्बन्ध स्थापित करते हैं ।


अभ्यास की प्रारम्भिक स्थिति में किसी बोलने वाले का होना आवश्यक है । इसके लिए यदि सम्भव हो तो टेप रिकार्डर का इस्तेमाल किया जा सकता है । आगे चलकर जब आपको निर्देश याद हो जायेंगे तो आप स्वयं ही अकेले में अभ्यास कर सकते हैं ।

योगनिद्रा में अभ्यासी गहन शिथिलन की स्थिति में पहुँच जाता है । नींद की प्रारम्भिक तैयारी के रूप में भी इसका अभ्यास किया जाता है । बहुत से लोग यह नहीं जानते कि किस तरह सोना चाहिए । वे अनेक प्रकार की चिन्ताओं का बोझ लिए हुए अपनी समस्याओं पर विचार करते हुए सो जाते हैं ।

नींद में भी उनका मन सक्रिय तथा शरीर तनावपूर्ण रहता है । जब वे सोकर उठते हैं , तो उन्हें थकान लगती है । नींद के द्वारा उन्हें विश्राम नहीं मिल पाता । बहुत मुश्किल से कोशिश करते - करते वे आधे घण्टे के बाद बिस्तर से उठते हैं । अत : हर व्यक्ति को वैज्ञानिक ढंग से सोने की कला सीखनी

चाहिए।
सोने के पहले योगनिद्रा का अभ्यास करें । इससे सम्पूर्ण शरीर और मन शिथिल हो जायेगा । नींद गहरी आयेगी और कम समय में पूरी हो जायेगी और जागने पर आप ताजगी एवं स्फूर्ति का अनुभव करेंगे । योगनिद्रा के अभ्यास में शारीरिक केन्द्रों की स्थिति अन्तर्मुखी हो जाती है ।
#Thread
आइऐ आज इंदिरा गांधी की हिंदू विरोधी नीतीयों के बारे में जानते है, जिसे सबको जानने का अधिकार है

इंदिरा गांधी के बनाये नियम :

इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्ष शब्द जोड़ा था।
धर्मनिरपेक्षता यानी कि सरकार और कानून धार्मिक...

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आधार पर किसी के भी साथ भेदभाव भी नहीं कर सकते।सभी धर्मों को एक समान माना जाएगा। सभी धर्म के लोगों को एक जैसे ही अधिकार प्राप्त होंगे।तो आइए आज इस धर्मनिरपेक्षता की सच्चाई को जान लिया जाए-

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शादी शगुन: केवल मुस्लिम लड़कियों की शादी पर 51,000 रु

नई उड़ान: UPSC & PSC की परीक्षाओं के लिए हर मुस्लिम की एक लाख की मदद

सीखो और कमाओ: हर मुस्लिम प्रतिभागी को 25,000

नई मंजिल : हर मुस्लिम प्रतिभागी को 56,500

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नई रोशनी : मुस्लिम महिलाओं में नेतृत्व क्षमता के लिए 2,25,000

हमारी धरोहर योजना : मुस्लिम प्रतिभागी को 3,32,000 प्रति वर्ष

अल्पसंख्यक पिछड़ों को *बीस लाख* तक के रियायती ऋण

उस्ताद योजना : हर अल्पसंख्यक अध्येता को नौ लाख बारह हजार रू

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नया सवेरा : मुस्लिम प्रतिभागी को कोचिंग के लिए भोजन आवास के साथ 1,00,000

मौलाना आजाद फेलोशिप : मुस्लिम प्रतिभागी को 28,000 प्रतिमाह व मकान भत्ता

मैट्रिक पूर्व छात्रवृत्ति योजना कक्षा 6 से 10 तक : मुस्लिम प्रतिभागी को 12,000 रू प्रतिवर्ष

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क्या आप जानते हैं कि क्या है, पितृ पक्ष में कौवे को खाना देने के पीछे का वैज्ञानिक कारण!

श्राद्ध पक्ष में कौओं का बड़ा ही महत्व है। कहते है कौआ यम का प्रतीक है, यदि आपके हाथों दिया गया भोजन ग्रहण कर ले, तो ऐसा माना जाता है कि पितरों की कृपा आपके ऊपर है और वे आपसे ख़ुश है।


कुछ लोग कहते हैं की व्यक्ति मरकर सबसे पहले कौवे के रूप में जन्म लेता है और उसे खाना खिलाने से वह भोजन पितरों को मिलता है

शायद हम सबने अपने घर के किसी बड़े बुज़ुर्ग, किसी पंडित या ज्योतिषाचार्य से ये सुना होगा। वे अनगिनत किस्से सुनाएंगे, कहेंगे बड़े बुज़ुर्ग कह गए इसीलिए ऐसा करना

शायद ही हमें कोई इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण बता सके।

हमारे ऋषि मुनि और पौराणिक काल में रहने वाले लोग मुर्ख नहीं थे! कभी सोचियेगा कौवों को पितृ पक्ष में खिलाई खीर हमारे पूर्वजों तक कैसे पहुंचेगी?

हमारे ऋषि मुनि विद्वान थे, वे जो बात करते या कहते थे उसके पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक कारण छुपा होता था।

एक बहुत रोचक तथ्य है पितृ पक्ष, भादो( भाद्रपद) प्रकृति और काक के बीच।

एक बात जो कह सकते कि हम सब ने स्वतः उग आये पीपल या बरगद का पेड़/ पौधा किसी न किसी दीवार, पुरानी

इमारत, पर्वत या अट्टालिकाओं पर ज़रूर देखा होगा। देखा है न?

ज़रा सोचिये पीपल या बरगद की बीज कैसे पहुंचे होंगे वहाँ तक? इनके बीज इतने हल्के भी नहीं होते के हवा उन्हें उड़ाके ले जा सके।
#Thread
महात्मा की खाल ओढ़े ऐक भेड़िये का सच!!

मनु बेन के आइने में गांधी:

मनु बेन महात्मा गाँधी के अंतिम वर्षों की निकट सहयोगी थीं। मनु को प्रायः गाँधीजी की पौत्री कहा जाता है। वास्तव में यह रिश्ता बहुत दूर का था। वह गाँधीजी के चाचा की प्रपौत्री थी।

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लगभग अशिक्षित, सोलह-सत्रह वर्ष की लड़की, जिस के पिता जयसुखलाल गाँधी एक लाचार से साधारण व्यक्ति थे। उसी मनु को लेकर गाँधी के ‘ब्रह्मचर्य प्रयोग’ न केवल गाँधी के जीवन के अंतिम प्रयोग हैं, बल्कि सर्वाधिक विवादास्पद भी।

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गाँधी की जिद और उन के परिवार व निकट सहयोगियों के विरोध का यह दौर 1946-1947 ई. के दौरान कई महीने चला। इस पर गाँधी से उन के पुत्र देवदास तथा सरदार पटेल, किशोरलाल, नरहरि, आदि सहयोगियों ने गाँधी से आंशिक/ पूर्ण संबंध-विच्छेद तक कर लिया था।

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जिन लोगों ने तीखा विरोध किया उन में ठक्कर बापा, बिनोबा भावे, घनश्याम दास बिड़ला, आदि भी थे। आजादी से पहले एक बार सरदार पटेल ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि गांधी जी के ब्रह्मचर्य के ये प्रयोग बन्द कर दिए जाने चाहिए। परन्तु नेहरू ने कभी इन प्रयोगों पर प्रश्न नही उठाया।

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शायद इसी कारण सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नही बन सके। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 25 जनवरी 1947 को गांधी जी को पत्र लिखा था, जिसमें उनके प्रयोग को भयंकर भूल बताते हुए उसे रोकने को कहा था। पटेल ने लिखा था कि ऐसे प्रयोग से उनके अनुयायियों को गहरी पीड़ा होती है।

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क्यों जरूरी है श्राद्ध, क्या है पितृ पक्ष का महत्व और क्या है सही विधि

भारतीय महीनों की गणना के अनुसार भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को सृष्टि पालक भगवान विष्णु के प्रतिरूप श्रीकृष्ण का जन्म धूमधान से मनाया जाता है।
#पितृपक्ष

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तदुपरांत शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को प्रथम देव गणेशजी का जन्मदिन यानी गणेश महोत्सव के बाद भाद्र पक्ष माह की पूर्णिमा से अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति के लिए अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा का महापर्व शुरू हो जाता है।

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इसको महापर्व इसलिए बोला जाता है क्योंकि नौदुर्गा महोत्सव नौ दिन का होता है, दशहरा पर्व दस दिन का होता है, पर यह पितृ पक्ष सोलह दिनों तक चलता है।

हिंदू धर्म की के अनुसार अश्विन माह के कृष्ण पक्ष से अमावस्या तक अपने पितरों के श्राद्ध की परंपरा है।

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यानी कि 12 महीनों के मध्य में छठे माह भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से (यानी आखिरी दिन से) 7वें माह अश्विन के प्रथम पांच दिनों में यह पितृ पक्ष का महापर्व मनाया जाता है।

सूर्य भी अपनी प्रथम राशि मेष से भ्रमण करता हुआ जब छठी राशि कन्या में एक माह के लिए भ्रमण करता है...

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तब ही यह सोलह दिन का पितृ पक्ष मनाया जाता है। उपरोक्त ज्योतिषीय पारंपरिक गणना का महत्व इसलिए और भी बढ़ जाता है क्योंकि शास्त्रों में भी कहा गया है कि आपको सीधे खड़े होने के लिए रीढ़ की हड्डी यानी बैकबोन का मजूबत होना बहुत आवश्यक है...

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