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हिंदू धर्म में मृत्यु के पश्चात क्यूँ करते हैं अंतिम संस्कार (शव-दाह) !

मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है जिसे कोई टाल नहीं सकता। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और जिसकी मृत्यु हो गई है उसका जन्म भी निश्चित है।
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इस कथन से ज्ञात होता है कि जीवन और मृत्यु एक चक्र है जिससे होकर सभी देहधारियों को गुजरना होता है। मृत्यु से जीवन का नया आरंभ होता है इसलिए जीवात्मा का सफर सुखद हो और उसे अगले जन्म में उत्तम शरीर मिले इस कामना से अंतिम संस्कार नियम का पालन जरूरी बताया गया है।

हिन्दू धर्म में गर्भधारण से लेकर मृत्यु के बाद तक कुल सोलह संस्कार बताए गए हैं। सोलहवें संस्कार को अंतिम संस्कार और दाह संस्कार के नाम से जाना जाता है।

इसमें मृत व्यक्ति के शरीर को स्नान कराकर शुद्ध किया जाता है। इसके बाद वैदिक मंत्रों से साथ शव की पूजा की जाती है

फिर बाद में मृतक व्यक्ति का ज्येष्ठ पुत्र अथवा कोई निकट संबंधी मुखाग्नि देता है।

शास्त्रों के अनुसार परिवार के सदस्यों के हाथों से मुखाग्नि मिलने से मृत व्यक्ति की आत्मा का मोह अपने परिवार के सदस्यों से खत्म होता है। और वह कर्म के अनुसार बंधन से मुक्त होकर

अगले शरीर को पाने के लिए बढ़ जाता है

दाह संस्कार इसलिए जरूरी होता है शास्त्रों में बताया गया है शरीर की रचना पंच तत्व से होती है ये पंच तत्व हैं पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश।

शव का दाह करने से शरीर जल कर पुन: पंचतत्व में विलीन हो जाता है।
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जन्मदिवस विशेष

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की 6 अच्छी बातें जो उनसे सीख सकते हैं:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने आप को युथ के अनुसार सबसे अधिक ढाला है। कार्यों को लेकर उनका जुनून, यूथ से लगातार जुड़े रहना, टेक्‍नोलॉजी से अपडेट रहना..

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जमी से आसमां तक के फैसले उन्होंने इस कदर लिए है कि उनसे सीखने के लिए बहुत कुछ है। राजनीति दष्टि को एकतरफ रखते हैं तो उनमें कई सारी ऐसी स्किल्‍स है जो जीवन में हमेशा काम आएगी। तो आइए जानते हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 6 कौन सी अच्‍छी बातें हैं जो जरूर सीखना चाहिए -

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1. लीडरशीप स्किल - पीएम मोदी से लीडरशीप स्किल जरूर सीखना चाहिए। एक बार मंच से संबोधित करते हुए उन्‍होंने कहा था कि, 'अपने सबऑर्डिनेट से हमेशा एक घंटा अधिक काम करना चाहिए। ताकि अपने तजुर्बे से तुम उन्हें आगे की रणनीति बता सकों।

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2.विनम्रता - पीएम मोदी ने हमेशा जगह को देखते हुए अपने भाषण को उस अनुसार प्रस्‍तुत किया। जब देश को गंभीर मुद्दे पर संबोधित करते हैं तब वह कभी उग्र तो एकदम विनम्र भाव में जनता से अपील करते हैं। जब विदेश में भारत को प्रस्‍तुत करते हैं तो उनके प्रजेंटेशन स्किल पूरी तरह से बदल जाती है


जोश से वह भारत को प्रस्‍तुत करते हैं और जब कोई उनसे कोई सवाल करता है तब उसका सहजता और विनम्रता से उत्‍तर देते हैं।

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🌹🌺 “""" நண்பா... என்னிடம் கேட்க வேண்டிய கேள்வியை கேட்காமல் பழத்தை உரிக்கிறாயே" எனக் கோபங்கொண்ட நாத்திக நண்பன் - விளக்கும் எளிய கதை 🌹🌺
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🌺 சிவாவும் செல்வாவும் நெருங்கிய நண்பர்கள், செல்வா நாத்திகன், வாய்


ஜால திறமையுடைவன், சிவா தீவிர கிருஷ்ண பக்தன். செல்வா மேடையில் பிரசங்கம் செய்வதோ, "கடவுள் இல்லை, மதம் இல்லை, வேதமோ புராணமோ எதுவுமேயில்லை என்பதே வேலை.

🌺எல்லா மதத் தலைவர்களும் தங்கள் வயிற்றுப் பிழைப்புக்காக உண்டாக்கிக்கொண்ட கட்டுக்கதைகள்" என்று வாய் ஜால திறமையுடன்

சாதுரியமாகப் பிரசங்கித்துக் கொண்டிருப்பான்.
🌺செல்வாவுடைய பேச்சுத் திறமையைக் கண்டு ஜனங்கள் திரள் திரளாகக் கூடிவிட்டார்கள். கடைசியாக " கடவுளுமில்லை, கத்திரிக்காயுமில்லை, எல்லாம் பித்தலாட்டம்" எனச் சொல்லி முடித்து "யாராவது கேள்வி கேட்க வேண்டுமானால் மேடைக்கு வரலாம்" என்று அழைத்தான்.

🌺அப்போது நண்பன் சிவா மேடைமீது ஏறினான். தன் கோட்டுப் பாக்கெட்டிலிருந்து ஒரு ஆரஞ்சுப் பழத்தை எடுத்து, தோலை மெதுவாக உரித்தான்.

🌺"நண்பா... என்னிடம் கேட்க வேண்டிய கேள்வியை கேட்காமல் பழத்தை உரிக்கிறாயே" எனக் கோபங்கொண்டான் செல்வா.

🌺பழத்தை உரித்தவன் சுழை சுழையாகத் தின்று கொண்டே

பொறு, பொறு தின்று முடித்துவிட்டுக் கேள்வியைக் கேட்கிறேன்" என்று சொல்லியவாறு ரசித்துத் தின்றுகொண்டிருந்தான்.தின்று முடித்த பின்பு நாத்திக நண்பனை நோக்கி, "பழம் இனிப்பாய் இருக்கிறதா?" எனக் கேட்டான்.

🌺"பைத்தியக்காரனே, நான் தின்று பார்க்காமல் பழம் இனிப்பா, புளிப்பா என்று எவ்வாறு
क्या आपको पता है?

राजस्थान का एक भी जिला मुगलों के नाम पर नहीं है,

राजस्थान के 33 जिले है जिनके नाम हैं, गंगानगर, बीकानेर, जैसलमेर, बाडमेर, जालोर, सिरोही, उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, चित्तौड़गढ़, झालावाड़, कोटा, बारां, सवाईमाधोपुर,...


...करौली, धौलपुर, भरतपुर, अलवर, जयपुर, सीकर, झुंझुनू, चूरु, भीलवाड़ा, हनुमानगढ़, नागौर, जोधपुर, पाली, अजमेर, बूंदी, राजसमंद, टोंक,दौसा

कृपया इन नामों को ध्यान से देखें क्योंकि इन नामों में एक भी मुगलों के नाम नहीं है अर्थात एक भी जिले का नाम मुगलो पर नही है,...


...इन जिलों के नाम से ही पता चलता है,राजपूतो के शौर्य और बलिदान की गाथा,अब जानिए एक एक जिले का परिचयः

अजमेर:अजमेर 27 मार्च 1112 में चौहान राजपूत वंश के तेइसवें शासक अजयराज चौहान ने बसाया,

बीकानेर : बीकानेर का पुराना नाम जांगल देश,राव बीका जी राठौड़ के नाम से बीकानेर पड़ा,


गंगानगर : महाराजा गंगा सिंह जी से गंगानगर पड़ा,

जैसलमेर : जैसलमेर, महारावल जैसलजी भाटी ने बसाया,

उदयपुर : महाराणा उदय सिंह सिसोदिया जी ने बसाया उनके नाम से उदयपुर पड़ा,

बाड़मेर : बाड़मेर को राव बहाड़ जी ने बसाया,


जालौर : जालौर की नींव 10वी शताब्दी में परमार राजपूतों के द्वारा रखी गई,बाद में चौहान,राठौड़,सोलंकी आदि राजवंशो ने शासन किया,

सिरोही : राव सोभा जी के पुत्र, शेशथमल ने सिरानवा हिल्स की पश्चिमी ढलान पर वर्तमान शहर सिरोही की स्थापना की थी उन्होंने वर्ष 1425 ईसवी..
क्या यह आधुनिक तकनीकों वाला युग नींव खोदे बिना एक गगनचुंबी इमारत के निर्माण की कल्पना कर सकता है ?

यह तमिलनाडु का बृहदेश्वर मंदिर है, यह बिना नींव का मंदिर है । इसे इंटरलॉकिंग विधि का उपयोग करके बनाया गया है इसके निर्माण में पत्थरों के बीच कोई सीमेंट,..


..प्लास्टर या किसी भी तरह के चिपकने वाले पदार्थों का प्रयोग नहीं किया गया है इसके बावजूद पिछले 1000 वर्षों में 6 बड़े भूकंपो को झेलकर भी आज अपने मूल स्वरूप में है ।

216 फीट ऊंचा यह मंदिर उस समय दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर था।


इसके निर्माण के कई वर्षों बाद बनी पीसा की मीनार खराब इंजीनियरिंग की वजह से समय के साथ झुक रही है लेकिन बृहदेश्वर मंदिर पीसा की मीनार से भी प्राचीन होने के बाद भी अपने अक्ष पर एक भी अंश का झुकाव नहीं रखता।


इस मंदिर के निर्माण के लिए 1.3 लाख टन ग्रेनाइट का उपयोग किया गया था जिसे 60 किलोमीटर दूर से 3000 हाथियों द्वारा ले जाया गया था। इस मंदिर का निर्माण पृथ्वी को खोदे बिना किया गया था यानी यह मंदिर बिना नींव का मंदिर है ।


मंदिर टॉवर के शीर्ष पर स्थित शिखर का वजन 81 टन है आज के समय में इतनी ऊंचाई पर 81 टन वजनी पत्थर को उठाने के लिए आधुनिक मशीनें फेल हो जाएंगी ।
क्या आप जानते है?

जिस विश्व की परिकल्पना पाश्चात्य ने कुछ सौ वर्षों पहले की है, उसके बारे में हमारे धर्मग्रंथों में पहले से ही बता दिया गया था।

विश्व की संरचना भी सबसे पहले महर्षि वेदव्यास ने की थी।
महर्षि वेदव्यास द्वारा निर्मित विश्व का नक्शा -


1..महाभारत के भीष्म पर्व में लिखा है-

सुदर्शनं प्रवक्ष्यामि द्वीपं तु कुरुनन्दन।
परिमण्डलो महाराज द्वीपोऽसौ चक्रसंस्थितः।।
यथा हि पुरुषः पश्येदादर्शे मुखमात्मनः।
एवं सुदर्शनद्वीपो दृश्यते चन्द्रमण्डले।।
द्विरंशे पिप्पलस्तत्र द्विरंशे च शशो महान्।

2...अर्थात: हे कुरुनन्दन ! सुदर्शन नामक यह द्वीप चक्र की भाँति गोलाकार स्थित है,जैसे पुरुष दर्पण में अपना मुख देखता है,उसी प्रकार यह द्वीप चन्द्रमण्डल में दिखायी देता है।

इसके दो अंशो मे पिप्पल और दो अंशो मे
महान शश (खरगोश) दिखायी देता है।

इसी श्लोक को पढ़ कर ११वीं सदी में
श्रीरामानुजाचार्य ने महर्षि व्यास द्वारा
वर्णित उस नक़्शे को बनाया था।
चित्र-(1)

इस चित्र को यदि उल्टा कर दिया जाये
तो ये बिलकुल हमारी पृथ्वी का नक्शा
बन जाता है।
चित्र-(2)
और जैसा कि महर्षि व्यास ने कहा है -


5.. महर्षि व्यास ने कहा है,
इसे पृथ्वी के दो अंशों में बांटा जाये तो
ये पूर्णतः हमारी पृथ्वी का नक्शा बन
जाता है।
चित्र-(3)

जिस समय श्रीरामानुजाचार्य ने ये नक्शा बनाया था उस समय पूरी दुनिया यही सोचती थी कि पृथ्वी सपाट है।
क्या आप जानते हैं हिंदी वर्णमाला का प्रत्येक अक्षर तार्किक है और सटीक गणना के साथ क्रमिक रूप से रखा गया है। इस तरह का वैज्ञानिक दृष्टिकोण अन्य विदेशी भाषाओं की वर्णमाला में शामिल नहीं है।

भारतीय भाषाओं की वर्णमाला विज्ञान से भरी हुई हैं।

#हिन्दीदिवसकीहार्दिकशुभकामनाएं


क ख ग घ ड़ – पांच के इस समूह को “कण्ठव्य” कंठवय कहा जाता है क्योंकि इस का उच्चारण करते समय कंठ से ध्वनि निकलती है।

च छ ज झ ञ – इन पाँचों को “तालव्य” तालु कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ ऊपर तालू को छूती है

बोल के देखें


ट ठ ड ढ ण  – इन पांचों को “मूर्धन्य” मुर्धन्य कहा जाता है क्योंकि इसका उच्चारण करते समय जीभ मुर्धन्य (ऊपर उठी हुई) महसूस करेगी।

त थ द ध न – पांच के इस समूह को दन्तवय कहा जाता है क्योंकि यह उच्चारण करते समय जीभ दांतों को छूती है।

🙏🏻 स्वयं करके देखें


प फ ब भ म – पांच के इस समूह को कहा जाता है ओष्ठव्य क्योंकि दोनों होठ इस उच्चारण के लिए मिलते हैं।

दुनिया की किसी भी अन्य भाषा में ऐसा #वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं है! निःसंदेह, हमें अपनी ऐसी भारतीय भाषा पर गर्व होना चहिए!

पाणिनि के व्याकरण में  महेश्वर सूत्र है  जो कि संख्या में 14 है ,कहा जाता है कि ये स्वर महादेव के डमरू से निकले हुए ध्वनि है जिसके आधार पर व्याकरण की रचना की गई और भाषा का विकास