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Pravritti and Nivritti #Thread

Pravritti is worldly interaction i.e from inside to outside whereas Nivritti is inner contemplation i.e from outside to inside.

Let's understand both with examples


Pravritti:

It naturally flows out of us and is there from the time we are born till we die. And we are naturally inclined towards action.

A baby crawls, turns, twists , pulls, pushes, walks, runs without any formal training. Because it's the pravritti of the baby.


Outward interaction is essential for the continuity of life, for organising the Society, and concluding with Karma Yoga.

Right Karmas (action) can bring prosperity, happiness and contentment.

Nivritti

This needs training unlike Pravritti so that we can understand ourselves better, understand our nature, find how we react, how we feel and why do we feel so.

Meditation is that training.


Nivritti leads to the answers of the questions:

Who am I? What am I here for?

It stabilizes our physical body and purifies our thoughts. It also helps us to answer the question: Why should we do this?

Both Pravritti and Nivritti are interconnected.
कुंडी में चटनी रगड़ना क्यों जरूरी है?
भोजन में जो आयरन होता है उसको शरीर में absorb करने के लिये विटामिन c की आवयश्कता पड़ती है । जिस लिये सनातन आयुर्वेदिक वैज्ञानिकों ने चटनी का अविष्कार किया ।


सनातन आयुर्वेदिक उपकरणों जैसे कुंडी सोटे में रगड़ी गई चटनी को भोजन के साथ खाने से आपको निम्नलिखित लाभ होते हैं ।

1. आपको और आपके बच्चों iron के साथ साथ विटामिन c भी मिलता है जिससे आप स्वस्थ रहते हैं ।आपको केमिकल्स से तैयार ऊल्लू पैथी की गोलियां नहीं खानी पड़ती ।

2. आपको gym के गन्दी हवा में पसीना बहाने की जरूरत नहीं पड़ती । कुंडी में चटनी रगड़ने से आप की कसरत भी होती रहती है और आपके भोजन का स्वाद भी बढ़ जाता है ।

3. चटनी में आप आवश्कता के अनुसार आयुर्वेदिक औषधियों जैसे गिलोय ,कच्चे आम ,पुदीना, धनियां ,काली मिर्च ,अनारदाना , कच्चे प्याज ,मरुआ आदि डाल सकते हैं ।

4.जब आप mixer में चटनी बनाते हैं तो कई औषधियों में कई प्रकार के रस होते हैं जो केवल कूटने से निकलते हैं ।

उदहारण के लिये प्याज में विशेष प्रकार की झिल्ली होती है । जो प्याज पर प्रहार करने पर ही रस छोड़ती है काटने पर नहीं । इसलियें सनातन भारत में पहले मुक्के से प्याज तोड़ा जाता था । ऐसा नहीं है कि चाकू सनातन भारत मे उपलब्ध नहीं था ।
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महान गणितज्ञ आर्यभट ने अपनी पुस्तक ‘आर्यभटीय’ में 120 सूत्र दिए. पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना, पाई का सटीक मान, सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की व्याख्या, समयगणना, त्रिकोणमिति, ज्यामिति, बीजगणित आदि के कई सूत्र व प्रमेय


आधुनिक विज्ञान से कई वर्षों पहले हमें आर्यभट द्वारा रचित ‘आर्यभटीय’ में मिलते हैं.

1. 🌺🌺🌺पृथ्वी का घूमना🌺🌺🌺

अनुलोमगतिर्नौस्थः पश्यत्यचलं विलोमगं यद्वत्।
अचलानि भानि तद्वत् समपश्चिमगानि लंकायाम्।।
(आर्यभटीय, गोलपाद, श्लोक 9)


अर्थ: जिस प्रकार से नाव में बैठा हुआ मनुष्य जब प्रवाह के साथ आगे बढ़ता है तो उसे लगता है कि पेड़-पौधे, पत्थर और पर्वत आदि उल्टी गति से जा रहे हैं. उसी प्रकार अपनी धुरी पर घूम रही पृथ्वी से जब हम नक्षत्रों की ओर देखते हैं तो वे उल्टे दिशा में जाते हुए दिखाई देते हैं.


इस श्लोक के जरिए आर्यभट ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि पृथ्वी भी अपनी धुरी पर घूमती है.

2. 🌺🌺🌺पाई का मान🌺🌺🌺

चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्राणाम्।
अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्यासन्नो वृत्तपरिणाहः॥
(आर्यभटीय, गणितपाद, श्लोक 10)


अर्थ: 100 में चार जोड़ें, आठ से गुणा करें और फिर 62000 जोड़ें. इस नियम से 20000 परिधि के एक वृत्त का व्यास ज्ञात किया जा सकता है.
(100 + 4) x 8 +62000/ 20000= 3.1416
इसके अनुसार व्यास और परिधि का अनुपात (2πr/2r) यानी 3.1416 है, जो पांच महत्वपूर्ण आंकड़ों तक बिलकुल सटीक है.
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प्रस्तुत प्रसंग रामायण के सुंदरकांड में से लिया गया है जिसमें बहुत ही सरल तरीके से हनुमान जी की अन्तर्मन की भावनाओं से ये समझाया गया है कि ईश्वर की इच्छा बिना संसार में कुछ भी होना संभव नहीं।
अत: जो हुआ, जो हो रहा है और जो होगा, सब प्रभु की इच्छा से होगा।


अशोक वाटिका में जिस समय रावण क्रोध से भरकर, तलवार लेकर, सीता माता को मारने के लिए दौड़ पड़ा , तब हनुमान जी को लगा कि इसकी तलवार छीनकर, इसका सिर काट लेना चाहिए।


किन्तु अगले ही क्षण उन्होंने देखा कि मंदोदरी ने रावण का हाथ पकड़ लिया। ये देखकर वे गदगद हो उठे और ये सोचने लगे कि यदि मैं आगे बढ़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मैं न होता तो सीता जी को कौन बचाता?
बहुत बार हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है,
मैं न होता, तो क्या होता ?

परंतु ये क्या हुआ?
सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने स्वयं रावण की पत्नी को ही सौंप दिया। तब हनुमान जी समझ गए कि प्रभु जिससे जो काम लेना चाहते हैं, वह उसीसे लेते हैं। कोई और चाहकर भी वह काम नहीं कर सकता।

आगे चलकर जब त्रिजटा ने कहा कि लंका में बन्दर आया हुआ है और वह लंका जलाएगा।


तो हनुमान जी बड़ी चिंता में पड़ गए कि प्रभु राम ने तो लंका जलाने को कहा ही नहीं है और त्रिजटा कह रही है कि उन्होने स्वप्न में देखा है कि एक वानर ने लंका जलाई है। अब उन्हें क्या करना चाहिये। फिर उन्होने सोचा,'जो प्रभु कि इच्छा।'
1. High Probability of serial passaging in Transgenic Mice expressing hACE2 in genesis of SARS-COV-2!
2 papers:
Human–viral molecular mimicry
https://t.co/irfH0Zgrve
Molecular Mimicry
https://t.co/yLQoUtfS6s

2. Must Read! Confirmation with supporting evidence via @flavinkins
https://t.co/NEf9HK6ReB
"ONLY place where this thing could emerge, naturally or Artificially, is by passage in HUMANIZED MICE"

3. Springer Article


4. Takeaway most significant quotes from Springer Article, burn this into your brain:
"Such a peptide commonality is unexpected and highly improbable from a mathematical point of view"


5. One image to explain it all!
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