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🌺जब गणेश जी की क्षुधा शान्त न कर पाए धन कुबेर🌺

सनातन धर्म में धन, सुख और समृद्धि के देवता कुबेर माने गए हैं ।एक बार कुबेर जी को इसी बात का अभिमान हो आया कि उनका इस संसार में कितना महत्व है। उनके बिना तो कोई भी व्यक्ति धन,सुख और समृद्धि को नहीं पा सकता।


कुबेर को इसबात का घमंड होगया कि उनमें इतनी क्षमता है कि वो सभी का भरण पोषण कर सकते हैं।उनके धन वैभव से वो किसी को भी तृप्त कर सकते हैं।अब कुबेर सभी देवी देवताओं के पास जाकर स्वयं ही अपना गुणगान करने लगे व ये सोचने लगे कि वे ऐसा क्या करें कि तीनों लोकों में उनकी और भी जय जयकार हो।


एकदिन अभिमान में चूर कुबेर जी कि मुलाकात देवर्षि नारद से होती है।नारद जी के सामने भी कुबेर अपना बखान और गुणगान करना शुरु कर देते हैं और उनसे ये पूछते हैं कि उन्हें और क्या करना चाहिये जिससे कि उनके वर्चस्व में चार चाँद लग जाएं। नारद जी उनकी बातों में छुपे अहंकार को भांप लेते हैं।


तब देवर्षि उन्हें कुछ ऐसा करने को कहते हैं जिससे कुबेर जी का अहंकार चूर हो जाए।नारद कुबेर को कहते हैं,"हे कुबेर!आपको अपने वर्चस्व में चार चाँद लगाने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन करना चाहिए व उस भोज में संसार के सभी जीवों,सभी देवी-देवता,नाग,गन्धर्व,यक्ष आदि को आमंत्रित करना चाहिए।

इनके अलावा आप त्रिदेवों ब्रह्मा,विष्णु और महेश को भी सपरिवार आमंत्रित करें।ऐसे भव्य भोज का आयोजन करने से चारों दिशाओं और तीनों लोकों में आपके धन-वैभव और समृद्धि की जय-जयकार होगी।" कुबेर देवर्षि कि ये बात सुन बहुत ही खुश होते हैं और भव्य-भोज की तैयारी शुरु कर देते हैं ।