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लाहौर संग्रहालय में हिंदू देवी-देवताओं की दुर्लभ प्रतिमाएँ
इस तथ्य को कितने लोग जानते हैं कि पाकिस्तान के लाहौर नगर के संग्रहालय में हिंदू देवी-देवताओं की दुर्लभ प्रतिमाओं का बहुमूल्य भंडार संग्रहित है। ये प्रतिमाएँ 1000 से लेकर 2000 वर्ष पुरानी है।


पाकिस्तान के निर्माण के बाद वहां यह अभियान चला था कि पुरानी विरासत से पाकिस्तानियों का कोई वास्ता नहीं है। मगर अब वहां पर दृष्टिकोण में तेजी से परिवर्तन आ रहा है। पाकिस्तान के विख्यात पुरातत्ववेता डाॅ. मीर कासिम ने पेशावर में एक गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा है कि

सभ्यता और संस्कृति एक निरंतर धारा है जिस पर धर्मांतरण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यही कारण है कि अब पाकिस्तानी इस्लाम से पूर्व के अपने पूर्वजों को तलाश कर रहे हैं।

Today's post is for Hindus from all over the world especially It is a gift for Hindu friends living in India.
Pakistan and India were one country before 1947. When the two countries were divided, a large number Hindus and Muslims had to migrated After the migration of Muslims and

Hindus, temples in Muslim areas and mosques in Hindu areas were deserted. The temples in the Pakistani region were left untouched, so many of the relics of these temples are kept in the Lahore Museum to preserve.
Different Hindu Gods In Lahore Museum
Due to the recent conflict
#रक्षाबंधन

कल रक्षाबंधन पर 50 साल बाद बन रहा है यह योग, राखी बांधने से पहले जरूर करें ये काम, आइये जानें राखी बांधने का सर्वोत्तम शुभ मुहूर्त.

हिंदी पंचांग के अनुसार, कल 22 अगस्त को सावन मास की पूर्णिमा तिथि है. सावन पूर्णिमा की तिथि हिंदू धर्म में बहुत ही महत्वपूर्ण होती है..


इस तिथि को भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षा बंधन का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है. बहनें अपने भाइयों की कलाई पर #राखी बांधती हैं. पूरे 50 साल बाद इस बार के रक्षा बंधन पर यह चार विशिष्ट योग बन रहें हैं. ऐसे में इस रक्षा बंधन का माहात्म्य अतुलनीय है...

इस लिए बहनें भाई को राखी बांधने से पहले ये काम जरूर कर लें.

कल दि. 21 अगस्त श्रावण मास को पू्र्णिमा एवं रक्षाबंधन अतिशुभ पावन पर्व है। जो कोई भी पूर्णिमा पर व्रत पूजन इत्यादि करता है। उसे सत्यनारायण भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

▪️राखी बंधने से पहले करें ये काम▪️

इस साल रक्षाबंधन के दिन भद्रा का साया नहीं रहेगा. बहनें सूर्योदय के बाद कभी भी अपने भाइयों को राखी बांध सकती हैं. लेकिन इससे पहले बहनों को चहिये कि वे राखी को भगवान को अर्पित करें. हिंदू धर्म शास्त्र के मुताबिक, सबसे पहले देवताओं को राखी बांधकर उनको भोग लगाना चाहिए..

तत्पश्चात भाइयों को राखी बांधें. धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से भगवान प्रसन्न होते हैं और बहनों को मनवांछित वरदान देते हैं. भाइयों का घर धन-दौलत से भर देते हैं.

सबसे पहले राखी #भगवान_श्री_गणेश_जी को बांधना चाहिए. उसके बाद अन्य देवों को जैसे भगवान विष्णु, भगवान शिव,भगवान
गुरु पादुका स्तोत्रम्

अनंतसंसार समुद्रतार नौकायिताभ्यां गुरुभक्तिदाभ्याम् ।
वैराग्यसाम्राज्यदपूजनाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्


कवित्ववाराशिनिशाकराभ्यां दौर्भाग्यदावां बुदमालिकाभ्याम् ।
दूरिकृतानम्र विपत्ततिभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्


नता ययोः श्रीपतितां समीयुः कदाचिदप्याशु दरिद्रवर्याः ।
मूकाश्र्च वाचस्पतितां हि ताभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्


नालीकनीकाश पदाहृताभ्यां नानाविमोहादि निवारिकाभ्यां ।
नमज्जनाभीष्टततिप्रदाभ्यां नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्


नृपालि मौलिव्रजरत्नकांति सरिद्विराजत् झषकन्यकाभ्यां ।
नृपत्वदाभ्यां नतलोकपंकते: नमो नमः श्रीगुरुपादुकाभ्याम्
क्यूँ मनाया जाता है रक्षाबंधन का पर्व और क्या हैं इस पर्व से जुड़ी, माँ लक्ष्मी और राजा बलि की पौराणिक कथा

कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है. भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर असुरों के राजा बलि से तीन पग भूमि का दान माँगा, दानवीर बलि इसके लिए सहज राजी हो गये


वामन ने पहले ही पग में धरती नाप ली,तो राजा बलि समझ कि गये कि ये वामन कोई और नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु ही हैं. बलि ने विनय पूर्वक भगवान विष्णु को प्रणाम किया और अगला पग रखने के लिए अपने शीश को प्रस्तुत किया. विष्णु भगवान बलि पर प्रसन्न हुए और वरदान माँगने को कहा


तब असुर राज बलि ने वरदान में भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वह उनके द्वारपाल बने । भगवान विष्णु ने राजा बलि के इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और वह राजा बलि के साथ पाताल लोक चले गए। भगवान विष्णु के कई दिनों तक दर्शन न होने कारण माता लक्ष्मी परेशान हो गई और वह नारद मुनि के पास गई।

नारद मुनि के पास पहुंचकर उन्होंने उनसे पूछा के भगवान विष्णु कहाँ है। जिसके बाद नारद मुनि ने माता लक्ष्मी को बताया कि वह पाताल लोक में हैं और वरदान हेतु राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हुए हैं।

तब माता लक्ष्मी के आग्रह पे नारद मुनि ने भगवान विष्णु को वापस लाने का उपाय बताया ।

उन्होंने कहा कि आप श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक में जाएं और राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बाँध दें। रक्षासूत्र बाँधने के बाद राजा बलि से उपहार स्वरूप भगवान विष्णु को वापस माँग लें।

तब माता लक्ष्मी ने नारद मुनि की सलाह वैसा ही किया और असुर राज बलि को राखी बाँधी
शक्तिपीठ अलोपी देवी मंदिर प्रयागराज: जहां बिना मूर्ति की होती है पूजा 🙏🙏🚩🚩🚩
#Thread
प्रयागराज के अलोपीबाग में स्थित अलोपी देवी मंदिर को मां अलोपशंकरी का सिद्धपीठ मंदिर नाम से जाना जाता है। यहां मां सती के दाहिने हाथ का पंजा एक कुंड में गिरकर अलोप (लुप्त) हो गया था,


इसी वजह से इस शक्ति पीठ को अलोप शंकरी नाम दिया गया।अतः यह मंदिर मां शक्ति के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। यह एक ऐसा खास मंदिर है, जहां कोई मूर्ति नहीं रखी गई है।


मंदिर प्रांगण के बीच के स्थान में एक चबूतरा है जहां एक कुंड बना हुआ है। इसके ऊपर एक खास झूला या पालना है, जिसे लाल कपड़े से ढंक कर रखा जाता है। मां सती की कलाई इसी स्थान पर गिरी थी। यह प्रसिद्ध शक्ति पीठ है और इस कुंड के जल को चमत्कारिक शक्तियों वाला माना जाता है।


आस्था के इस अनूठे मन्दिर में भक्त प्रतिमा की नहीं, बल्कि झूले या पालने की ही पूजा करते हैं।

यहां मान्यता है कि यहाँ कलाई पर रक्षा सूत्र बाँधकर मन्नत माँगने वाले भक्तों की हर कामना पूरी होती है और हाथ में धागा बंधे रहने तक देवी उनकी रक्षा करती हैं। नवरात्रों में यहां मां का श्रृंगार तो नहीं होता, परंतु उनके स्वरूपों का पाठ किया जाता है।
जय श्री राम जय श्री हनुमान 🚩🚩

आपने हनुमान चालीसा के महत्व एवं चमत्कारी असर के बारे में जाना हैं समझा है और शायद महसूस भी किया है लेकिन क्या आपने कभी श्री हनुमान बाहुक के बारे में सुना है?

इसकी संरचना कैसे हुई और किसने पहली बार इसका जाप किया, इसके पीछे एक रोचक कहानी है। 👇🏻


आइए जाने:

संत तुलसीदास जी श्रीराम व हनुमान जी के परम भक्त थे। एकबार की बात है कलियुग के प्रकोप से उनकी भुजा में अत्यंत पीड़ा हुई, वे काफी बीमार पड़ गए।

उन्हें वात ने जकड़ लिया था, शरीर में काफी पीड़ा भी थी। पीड़ा भरी आवाज में उन्होंने हनुमान नाम का जाप आरंभ कर दिया।
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अपने भक्त की पीड़ा देखते हुए हनुमान जी प्रकट हुए। तो पीड़ा व रोग निवारण के लिये तुलसीदास जी ने इस हनुमान बाहुक के पाठ की रचना की।

हनुमान बाहुक के 44 चरणों का पाठ हैं जिससे तुलसीदास जी के सभी शारीरिक कष्टों दूर हो गए। कोई भी प्राणी यदि विधि से इसका परायण करता है तो 👇🏻

हनुमानजी की कृपा से उसको शरीर की समस्त पीड़ाओं से मुक्ति मिलती हैं ।

हनुमान बाहुक के लाभ: यदि आप गठिया, वात, सिरदर्द, कंठ रोग, जोड़ों का दर्द आदि किसी भी रोग या दर्द से परेशान हैं, तो जल का एक पात्र सामने रखकर हनुमान बाहुक का 26 या 21 दिनों तक मुहूर्त देखकर पाठ करें।

हनुमान बाहुक का पाठ भक्त को भूत-प्रेत जैसी बाधाओं से भी दूर रखता है।

हनुमान बाहुक के पाठ से भक्त के आसपास एक रक्षा कवच बन जाता है, जिसके प्रभाव से किसी भी प्रकार की नकारात्मक शक्ति उसे छू भी नहीं सकती👇🏻