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108 साल बाद, इस साल #नागपंचमी का एक दुर्लभ योग बना है जहाँ उत्तरा योग व हस्त नक्षत्र का विशेष संयोग के साथ ही शिन नक्षत्र भी संयुक्त है.

इस शुभयोग में विधिपूर्वक नाग अष्टकुल की पूजन, बाबा शिव को बहुत ही प्रसन्न करते है।

#Important_Thread


कश्यप ऋषि और पत्नी कद्रू के 8 पुत्र हुए जिन्हे नाग अष्टकुल कहा जाता है ---
 अनंत (शेष), वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापद्म, शंख और कुलिक।

अनंत (शेषनाग) :
भगवान विष्णु के सेवक शेषनाग के सहस्र फन पर धरती टिकी हुई है. ब्रह्मा के वरदान से ये पाताल लोक के राजा हैं.


वासुकि :
भगवान शिव के सेवक वासुकि हैं. समुद्र मंथन के दौरान मंदराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकि को ही रस्सी बनाया गया था. महाभारत काल में उन्होंने विष से भीम को बचाया था.


पद्म :
पद्म नागों का गोमती नदी के पास के नेमिश नामक क्षेत्र पर शासन था. बाद में ये मणिपुर में बस गए थे. कहते हैं असम में नागवंशी इन्हीं के वंशज हैं.


महापद्म :
विष्णुपुराण में सर्प के विभिन्न कुलों में महाद्म का नाम सामने आया है. वह बहुत ही जाग्रत देवता है
#Thread
भाग १

निम्नगानं यथा गंगा देवनामाच्युयतो यथा।
वैष्णावानां यथा शम्भुः पुराणानामिदम तथा ।।

बहने वाली नदियों में जैसे गंगा श्रेष्ट है, देवताओं में अच्युत श्रीकृष्ण श्रेष्ठ हैं, वैष्णवों में भगवान शंकर जी श्रेष्ठ हैं, वैसे ही पुराणों में श्रीमद्भागवद पुराण सबसे श्रेष्ठ है।


पर क्या आप हैं कि भागवद का ज्ञान कहाँ, किसके द्वारा और किसे दिया गया था?!

आज हम जानेंगे #शुकतीर्थ के बारे में जहां सर्व प्रथम शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत का ज्ञान दिया।
परीक्षित जी अर्जुन के पौत्र एवम् अभिमन्यु तथा उत्तरा के पुत्र थे।


महाभारत युद्ध में अभिमन्यू वीरगति को प्राप्त हुए और उनकी पत्नी उत्तरा के गर्भ को नष्ट करने के लिये अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, परंतु श्रीकृष्ण ने उत्तरा के गर्भ की रक्षा की। गर्भावस्था में ही प्रभु के दर्शन होने का सौभाग्य मात्र परीक्षित जी को ही प्राप्त हुआ है।


महाभारत युद्ध के पश्चात पांडव अपना साम्राज्य परीक्षित को सौंप कर स्वर्ग चले गए एवं श्रीकृष्ण के वैकुण्ठ सिधारने के पश्चात द्वापर युग का अंत हुआ एवं कलि युग का आगमन हुआ।
परीक्षित एक पुण्यात्मा थे उनके रहते कलि का प्रभाव पृथ्वी पर नहीं फैल पा रहा था।


अपने आचार्य कृप की आज्ञा से उन्होंने अश्वमेध यज्ञ करवाया और दिग्विजय करते हुए एक दिन वे सरस्वती के तट पर पहुंचे। उन्हें एक व्यक्ति हाथ में डंडा लिए बैल और गाय को पीटते हुए दिखा। उस बैल के एक पैर था और गाय जीर्ण अवस्था में दिख रही थी।
@Man_Banarasiya
@almightykarthik
1/n
Maharaj Nimi asked to Karbhajan Muni: what are worshipable deities of Kaliyuga?

Karabhajan Muni said:

त्यक्त्वा सुदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मीं
धर्मिष्ठ आर्यवचसा यदगादरण्यम्।
मायामृगं दयितयेप्सितमन्वधावद्
वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम्॥


2/n
त्यक्तवा- abandoning
सुदुस्त्यज- most difficult to give up
सुरेप्सित- anxiously desired by the demigods
राज्यलक्ष्मी- the goddess of fortune and her opulence;
धर्मिष्ठ- most perfectly fixed in religiousness
आर्यवचसा- according to the words of Arya
यद्- He who
अगात्- went

3/n
अरण्यम्- to the forest (taking to the renounced order of life)
मायामृगं- the conditioned soul
दयित्- out of sheer mercy
ईप्सित्- His desired object
अंवधावत् - running after
वंदे- I offer my homage
महापुरुष- O Lord Mahaprabhu
ते- to Your
चरणारविन्दम्- lotus feet.

4/n
This important verse of the Srimad Bhagavatam is understood to describe
A) Lord Sri Ramachandra
B) Lord Sri Krishna
C) Lord Sri Chaitanya Mahaprabhu


5/n
A) Lord Ramachandra:
I offer my humble obeisances to the Lord who leave great palace of Ayodhya, Devatas desire for that palace, and went to forest in order to follow the Dharma of his Arya, father maharaj Dasharatha. There He exhibited His great affection for mother Sita and
क्या आप जानते हैं कि राम जी अपने 14 वर्षों के वनवास के दौरान कहां कहां रहे व उन स्थानों पर क्या क्या घटनायें हुयीं?
कुल पड़ाव इस प्रकार हैं
प्रयाग,चित्रकूट,सतना,रामटेक,पंचवटी,भंडारदारा,तुलजापुर,सुरेबान,कर्दीगुड,कोप्पल,हम्पी,तिरूचरापल्ली,कोडिक्करल,रामनाथपुरम,रामेश्वरम् (भारत)


तीन स्थान वास्गामुवा,दुनुविला एवम् वन्थेरूमुलई ये श्रीलंका में हैं।
नुवारा एलिया एक वो स्थान है जहां से होकर प्रभु श्री राम जी लंका के लिये गुजरे थे।
@JyotiKarma7
@DramaQueenAT
@AgniShikha100

पहला पड़ाव था सिंगरौर जो कि प्रयाग राज से 35 किमी का दूरी पर है यहीं पर केवट प्रसंग हुआ था यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित है यहीं पर श्री राम जी ने मां सीता के साथ गंगा मां की वन्दना की थी।


यात्रा का दूसरा पड़ाव था कुरई जहां प्रभु सिंगरौर से गंगा पार करने के पश्चात् उतरे थे यहां
प्रभु ने लक्ष्मण जी एवम् मां सीता के साथ विश्राम किया था।


तीसरा स्थान है प्रयाग जिसको किसी कालखंड में इलाहाबाद कहा जाता था तीर्थों के राजा प्रयागराज को ही माना जाता है क्योॆकि यहां वैतरिणी मां गंगा एवम् गंगा नदी की मुख्य सहायक नदी यमुना जी का मां सरस्वती के साथ संगम होता है।
#Long_Thread
भगवान सदैव अपने भक्तों की सुनते हैं, और उसका उदाहरण आपके सामने रख रहा हूँ जिसे पढ़ कर आपके रौंगटे खड़े हो जाएंगे।

दिनांक: 1 नवंबर 1979

समय: रात्रि 1 बजे

स्थान: तिरुपति मंदिर, आंद्र प्रदेश

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पूरा तिरुपति शहर और स्वयं भगवान श्रीमन्नारायण भी शयन कर रहे थे और घनघोर शांत रात्रि थी की इतने में ही…

ठंन्न ठंन्न ठंन्न ठंन्न!

तिरुपति मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर के श्रीविग्रह के ठीक आगे जो बड़ा सा घंट है वो अपने आप हिलने लगा..

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और उस घंट नाद से पूरा तिरुपति शहर एकदम आश्चर्य में भरकर उठ खड़ा हुआ।

मंदिर रात्रि 12 बजे पूर्ण रूप से बंद हो गया था, फिर ये कैसी घंटा नाद की ध्वनि आ रही है?
कोई भी जीवित व्यक्ति मंदिर में रात्रि 12 के बाद रहना संभव नही, तो फिर किसने ये घंटा नाद किया?

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कोई जीव-जंतु मंदिर में प्रवेश नही कर सकते क्योंकि सारे द्वार बंद है, तो फिर ये कौन है?
मंदिर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी श्री पी वी आर के प्रसाद के नेत्रो में अश्रु थे क्योंकि केवल वे जान पा रहे थे कि ये केवल घंटा नाद नही है..

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ये भगवान ने अपना संकेत दे दिया है मेरे "वरुण जाप" की सफलता के लिए।

भगवान के सभी भक्त यह घटना बड़ी श्रद्धा से पढ़ें :-

यह अलौकिक दिव्य चमत्कारी घटना सन् 1979 नवंबर माह की हैं।

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#Thread

रुद्री क्या है..?

रुद्री के बारे में हम सभी ने कहीं न कहीं सुना होगा कि इस शिव मंदिर में आज रुद्री या लघुरुद्र है। रुद्री ब्राह्मणों के साथ-साथ शिव उपासकों के लिए शिव को प्रसन्न करने का एक उत्कृष्ट पाठ है।

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रुद्री के बारे में कहा जाता है
"रुत द्रव्यति इति रुद्र"
अर्थात् रुत अर्थात दुःख और शोक का कारण, जो मिटा दे, नष्ट कर दे वह रुद्र है और ऐसे शिव के रुद्र रूप को प्रसन्न करने का मंत्र रुद्र है।

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वेदों में रुद्र के बारे में जो मंत्र हैं उन्हें शुक्ल यजुर्वेदीय, कृष्ण यजुर्वेदीय, ऋग्वेदीय मंत्र कहा गया है। सौराष्ट्र - शुक्ल यजुर्वेदिक रुद्र मंत्र गुजरात में अधिक प्रचलित हैं। रुद्र के इस भजन को अष्टाध्यायी कहा जाता है क्योंकि रुद्री में आठ मुख्य अध्याय हैं।

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इस भजन में रुद्र की आठ मुख्य मूर्तियाँ हैं पृथ्वी, जल, प्रकाश, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य और आत्मा। इसके रूपों का वर्णन मिलता है।

मोटे तौर पर इन अध्यायों में:
- पहला अध्याय गणपति का भजन है।
- दूसरा अध्याय भगवान विष्णु की स्तुति है।

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- तीसरा अध्याय इंद्र की स्तुति है।
- चौथा अध्याय सूर्यनारायण का स्तोत्र है।
- पांचवां अध्याय रुद्र के स्तोत्र का हृदय है।
- छठा अध्याय मृत्यु स्तोत्र है।
- सातवें अध्याय में भगवान मारुत का भजन है और,
- आठवां अध्याय अग्नि देवता का स्तोत्र है।

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अयोध्या में प्रभु श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का शिलान्यास करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वहां परिजात का पौधा लगाया। पौधारोपण के महत्व को उन्होंने बड़ी ही सहजता से सबको बता दिया। हमारे शास्त्रों में भी एक पेड़ लगाना और उसकी देखभाल करना सौ गायों का दान देने...


...के समान माना गया है। उस पर परिजात जैसा अति लाभदायक पौधा तो गुणों की खान है। हमारे शास्त्रों में परिजात को अत्यंत शुभ और पवित्र वृक्ष की श्रेणी में रखा गया है। इस वृक्ष की विशेषता है कि इसमें काफी मात्रा में फूल खिलते हैं। ये फूल सूर्यास्त के बाद खिलना शुरू होते हैं तथा


सूर्य के आगमन के साथ ही सारे फूल जमीन पर झर जाते हैं। अगले दिन यह फिर फूलों से सज जाता है। परिजात की उत्पत्ति के विषय में एक कथा है कि इसका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था जिसे इंद्र ने स्वर्ग ले जाकर अपनी वाटिका में रोप दिया था।


मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भी परिजात के फूलों का प्रयोग किया जाता है। पुराणों में बताते हैं कि इसके वृक्ष को छूने भर से थकान मिनटों में गायब हो जाती है तथा शरीर पुन: स्फूर्ति प्राप्त कर लेता है। इस दैवीय वृक्ष से भगवान श्रीकृष्ण तथा रुक्मिणी की प्रेम कहानी भी जुड़ी है।

पारिजात एक खूबसूरत और सुगंधित पुष्प होता है जिसे हारसिंगार भी कहा जाता है और इसे आप अपने घर की बालकोनी में भी बड़े आराम से लगा सकते हैं।इसे कूरी,सिहारु,सेओली,प्राजक्ता, शेफालिका,शेफाली,शिउली और अंग्रेजी में ट्री ऑफ सैडनेस (Tree of sadness), मस्क फ्लॉवर (Musk flower),..
📍 भवानी देवी

@IamBhavaniDevi

हिन्दुस्तान की बेटी, तमिलनाडु की भवानी देवी की तलवार की चमक से टोकियो मे देश का नाम जगमगा उठा । वो जैसे किसी संगीत की ताल पर तलवार चला रही हो । उसने ऐसा कर देशवासियो को मंत्र मुग्ध कर दिया ।


देखते ही देखते वो देशवासियो के दिलो की घङकन बन कर सबकी चहेती बन गई। इनकी तलवारबाजी को देश सलाम कर रहा है. खुद पीएम @narendramodi ने उन्हें पूरे देश के लिए एक प्रेरणा बताया है।


Tokyo Olmpics 2021 में क्वालिफाई करने वाली , पहली भारतीय भवानी देवी ने तलवारबाज ( fencer ) ने भले ही टोक्यो में कोई पदक ना जीता हो लेकिन,
उन्होंने देश के लिये सम्मान अर्जित किया, इसलिए कि, अंतरराष्ट्रीय सर्किट में प्रवेश करने वाली वह पहली और एकमात्र भारतीय महिला तलवारबाज है।

अब ऐसा लग रहा है कि भारत के और फेंसर्स भी ओलंपिक में क्वलिफाई करेंगे. 2028 ओलंपिक में भारत के कई तलवारबाज हिस्सा लेते दिखेंगे.'

भवानी देवी के जज्बे, बुद्धी कौशल, स्व प्रबंधन, फिटनेस और इच्छा शक्ति को हर भारतीय का सलाम है…

मेरी तरफ से प्रणाम
🙏
#Thread
कौन से ऋषि का क्या है महत्व:

अंगिरा ऋषि :-

ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि अंगिरा ब्रह्मा के पुत्र थे। उनके पुत्र बृहस्पति देवताओं के गुरु थे। ऋग्वेद के अनुसार, ऋषि अंगिरा ने सर्वप्रथम अग्नि उत्पन्न की थी।

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विश्वामित्र ऋषि :-

गायत्री मंत्र का ज्ञान देने वाले विश्वामित्र वेदमंत्रों के सर्वप्रथम द्रष्टा माने जाते हैं। आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत इनके पुत्र थे। विश्वामित्र की परंपरा पर चलने वाले ऋषियों ने उनके नाम को धारण किया। यह परंपरा अन्य ऋषियों के साथ भी चलती रही।

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वशिष्ठ ऋषि :-

ऋग्वेद के मंत्रद्रष्टा और गायत्री मंत्र के महान साधक वशिष्ठ सप्तऋषियों में से एक थे। उनकी पत्नी अरुंधती वैदिक कर्मो में उनकी सहभागी थीं।

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कश्यप ऋषि :-

मारीच ऋषि के पुत्र और आर्य नरेश दक्ष की १३ कन्याओं के पुत्र थे। स्कंद पुराण के केदारखंड के अनुसार, इनसे देव, असुर और नागों की उत्पत्ति हुई।

जमदग्नि ऋषि :-

भृगुपुत्र यमदग्नि ने गोवंश की रक्षा पर ऋग्वेद के १६ मंत्रों की रचना की है।

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केदारखंड के अनुसार, वे आयुर्वेद और चिकित्साशास्त्र के भी विद्वान थे।

अत्रि ऋषि :-

सप्तर्षियों में एक ऋषि अत्रि ऋग्वेद के पांचवें मंडल के अधिकांश सूत्रों के ऋषि थे। वे चंद्रवंश के प्रवर्तक थे। महर्षि अत्रि आयुर्वेद के आचार्य भी थे।

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