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Seriyana loosu. This is why I said Eelam activists are better off doing kuthu rap instead of worrying about whether Shiva is Vedic or not. Then these same people say Om Namah Shivaya. Adding Om and Nama: automatically makes it a mantra.

**Long thread alert**


Mantras are only found in Vedas, not in the common tongue. Anyways, her perspectives matter zilch. What is more alarming is how a proper Thirumurai vakyam such as Anbe Sivam is being twisted and appropriated for nefarious agendas and how SM is brazenly peddling the same nonsense.

Yasya nishvasitam Vedaa: yo vedebhyo akhilam jagat | Nirmame tam aham vande vidyaatirtha Maheshvaram ||
One Whose very breath is the Veda using which the entire Creation was made, I bow down to Maheswara Who purifies with His wisdom.
So, if Vedas are really His own breath, how

can one draw stupid faux ethnic identities denying His indication in the Vedas? This has no rationale even to the self-proclaimed rationalists.

Let's attempt to understand what the naama Shiva means. I believe this foundation is important before we go on to understand any Naama vaibhavam. Do note that in SD, the Naama and the Naami are indifferent. In fact, Bhaktas consider the Naama to be greater since
Most Popular on 31st of August, 2021
🌸 प्राचीन वैदिक संस्कृति प्रणाली🌸
जो हिन्दुत्व को समझ जाता है, वह हिन्दू हो जाता है।
@rightwingchora
@Anshulspiritual
@vivekvardhan05


1 गोत्र .
गोत्र का अर्थ है कि हम कौन से ऋषिकुल से है या हमारा जन्म किस ऋषिकुल से सम्बन्धित है । किसी व्यक्ति की वंश-परम्परा जहां से प्रारम्भ होती है, उस वंश का गोत्र भी वहीं से प्रचलित होता गया है, जो जिस ऋषि से प्रारम्भ होता है वहीं उसका गोत्र है।


विश्वामित्र, जमदग्नि, भारद्वाज, गौतम, अत्रि, वशिष्ठ, कश्यप- इन सप्तऋषियों और आठवें ऋषि अगस्त्य की संतान गोत्र कहलाती है।
इस तरह आठ ऋषियों की वंश-परम्परा में जितने ऋषि आ गए वे सभी गोत्र कहलाते हैं। और आजकल जितने गोत्र मिलते हैं वह उन्हीं के अन्तर्गत है।

सिर्फ भृगु, अंगिरा के वंशवाले ही उनके सिवाय और हैं जिन ऋषियों के नाम से भी गोत्र व्यवहार होता है।
इस प्रकार कुल दस ऋषि मूल में है। इस प्रकार देखा जाता है कि इन दसों के वंशज ऋषि लाखों हो गए होंगे और उतने ही गोत्र भी होने चाहिए।

2 -प्रवर
अपनी कुल परम्परा के पूर्वजों एवं महान ऋषियों को प्रवर कहते हें ।
अपने कर्मो द्वारा ऋषिकुल में प्राप्‍त की गई श्रेष्‍ठता के अनुसार उन गोत्र प्रवर्तक मूल ऋषि के बाद होने वाले व्यक्ति, जो महान हो गए वे उस गोत्र के प्रवर कहलाते है।
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महर्षि अगस्त्य एक वैदिक कालीन महान ऋषि थे। उनका जन्म काशी में जिस जगह हुआ था, उसे आज अगस्त्य कुंड के नाम से जाना जाता है।
महर्षि अगस्त्य का विवाह विदर्भ देश की राजकुमारी लोपमुद्रा से हुआ था जो एक पतिव्रता, वीर और बुद्धिमान स्त्री थी।


ऋग्वेद के कई मंत्रो की रचना महर्षि अगस्त्य ने की है तथा ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 165 सूक्त से 191 तक के सूक्तो को बताया है। महर्षि अगस्त्य ने तपस्या काल में मंत्रो की शक्ति को देखा था। इसलिए इन्हे मन्त्रदृष्टा ऋषि भी कहा जाता है।

भारत देश में महर्षि अगस्त्य के कई आश्रम है। उत्तराखंड के अगस्त्यमुनि नामक शहर में मुनि का प्राचीन आश्रम है।

यहाँ पर अगस्त्य ऋषि तपस्या करते थे। यही वह स्थान है जहाँ पर मुनि ने दो राक्षसों आतापी और वातापी का वध करके उनको यमपूरी पहुँचाया था।


आज यहाँ पर एक प्रसिद्ध मंदिर है और आसपास के गाँव में मुनि को इष्टदेव मानकर पूजा की जाती है।

महर्षि का एक आश्रम तमिलनाडु में भी है और ऐसी मान्यता है की अगस्त्य मुनि का शिष्य विंध्याचल पर्वत था जो अपनी ऊंचाई पर बहुत घमंड करता था...

...और एक दिन कौतुहलवश उसने अपनी ऊंचाई इतनी बड़ा दी की धरती पर सूर्य की किरणे आना बंद हो गयी तथा धरती पर हाहकार मच गया

तब सभी जन अगस्त्य ऋषि के पास गए और उनसे अपने शिष्य को समझाने की विनती करने लगे तब मुनि अगस्त्य ने विंध्याचल पर्वत से कहा मुझे दक्षिण की तरफ जाना है, इसलिए..