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🌺क्या आपको पता है रानी कमलापति के बारे में?🌺

भोपाल में बने भारत के सबसे हाईटेक रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति रेलवे स्टेशन हो गया है, पहले इसका नाम हबीबगंज रेलवे स्टेशन हुआ करता था। आज यह रेलवे स्टेशन किसी इंटरनेशनल एयरपोर्ट को भी मात देता है।


लेकिन हम स्टेशन की भव्यता की नहीं बल्कि उसकी दिव्यता की बात करेंगे, और दिव्यता इस रेल्वे स्टेशन के नाम में है।
जब भोपाल के इस स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखे जाने का समाचार लोगों ने सुना तो शेष भारत तो छोड़िये, मध्यप्रदेश भी जाने दीजिये,

भोपाल के नागरिकों तक को भी आश्चर्य हुआ कि ये रानी कमलापति कौन थी? भोपाल को तो नवाबों ने बसाया है, भोपाल में किसी हिन्दू राजा का नाम अगर सुना वो राजा भोज का सुना, तो फिर ये रानी कमलापति कहां से आ गई ?

ये रानी कमलापति हैं कौन?,अगर आपके मन में भी ये सवाल उठा हो,तो समझिये पिछले एक शतक के षड्यंत्र के परिणाम आंशिकरूप से आपके मस्तिष्क पर भी हुए हैं।वे हमें हमारी जड़ों से काटना चाहते थे और कुछ भी कहो वे कुछ हद सफल तो हुए हैं।खैर,रानी कमलापति को मध्यप्रदेश की पद्मावती भी कह सकते हैं।


जैसे पद्मावती ने अपने सम्मान की रक्षा के लिए जौहर किया था, ठीक वैसे ही रानी कमलापति ने भी जलसमाधि ली थी। सोलहवीं सदी में समूचे भोपाल क्षेत्र पर हिन्दू गोंड राजाओं का ही शासन था। कमलापति गोंड राजा निजामशाह की पत्नी थीं।भोपाल के पास गिन्नौरगढ़ से राज्य का संचालन होता था।
Part 1

It's a bit lengthy, just keep reading :)

The British Nuclear Policy In The 1970s. https://t.co/DE1A7e1SQ0


The British nuclear submarine-based deterrent initially came into service in the late 1960s, providing ultimately 4 ‘RESOLUTION’ class SSBNs, each carrying 16 Polaris missiles, with 3 warheads, intended to deter aggression by the Soviet Union.

The power of the Polaris system was that unlike fixed airfields & other sites, it was practically invulnerable to a first strike attack, & could exist to threaten to wipe out #Moscow & other major Soviet cities if required, even after UK had been obliterated in a nuclear attack.

In theory the UK nuclear deterrent was committed to @NATO – and would be employed alongside other NATO nuclear weapons if called upon as part of an integrated strike which would involve all out nuclear release.

This was the main role for the force, but in addition it could be, in theory, returned to national control and used to conduct a unilateral nuclear strike if British national survival was under threat.
झूला देवी मंदिर, चौबातिया रानीखेत🚩

झूला देवी मंदिर रानीखेत शहर से 7 किमी की दुरी पर स्थित एक लोकप्रिय पवित्र एवम् धार्मिक मंदिर है |यह मंदिर माँ दुर्गा को समर्पित है एवम् इस मंदिर को झूला देवी के रूप में नामित किया गया है | स्थानीय लोगों के अनुसार यह मंदिर 700 वर्ष पुराना है |


रानीखेत में स्थित झूला देवी मंदिर पहाड़ी स्टेशन पर एक आकर्षण का स्थान है |यह भारत के उत्तराखंड राज्य में अल्मोड़ा जिले के चैबटिया गार्डन के निकट रानीखेत से 7 किमी की दूरी पर स्थित है।वर्तमान मंदिर परिसर 1935 में बनाया गया है|झूला देवी मंदिर के समीप ही भगवान राम का मंदिर भी है ।


झूला देवी मंदिर को घंटियों वाला मंदिर के रूप में भी जाना जाता है | हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण क्षेत्र में रहने वाले जंगली जानवरों द्वारा उत्पीड़न से मुक्त कराने के लिए मां दुर्गा की कृपा बनाये रखने के उद्देश्य से किया गया था ।


मंदिर परिसर में झूला स्थापित होने के कारण देवी को “झूला देवी” नाम से पूजा जाता है |

मां के झूला झूलने के बारे में एक और कथा प्रचलित है। माना जाता है कि एक बार श्रावण मास में माता ने किसी व्यक्ति को स्वप्न में दर्शन देकर झूला झूलने की इच्छा जताई।


ग्रामीणों ने मां के लिए एक झूला तैयार कर उसमें प्रतिमा स्थापित कर दी।
उसी दिन से यहां देवी मां “झूला देवी” के नाम से पूजी जाने लगी।

यह कहा जाता है कि मंदिर लगभग 700 वर्ष पुराना है । चैबटिया क्षेत्र जंगली जानवर से भरा घना जंगल था ।
🔺 #राधा_कुंड की महिमा और इसकी कथा : #अहोई_अष्टमी पर राधा कुंड में स्नान करने से होती है संतान की प्राप्ति -

•भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा में "गोवर्धन गिर (पर्वत)" की परिक्रमा के मार्ग में एक चमत्कारी कुंड है जिसे राधा कुंड के नाम से जाना जाता है।


•इस कुंड की ऐसी महिमा है कि, यदि नि:संतान दंपत्ति कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी की मध्य रात्रि को (वह दंपत्ति) एक साथ स्नान करते हैं तो उन्हें संतान की प्राप्ति हो जाती है।

अहोई अष्टमी का यह पर्व यहां पर प्राचीनकाल से मनाया जाता है।

इस दिन पति और पत्नी दोनों ही निर्जला व्रत रखते हैं, और मध्य रात्रि में राधाकुंड में डूबकी लगाते हैं। तो ऐसा करने पर उस दंपत्ति के घर में बालक की किलकारियां शीघ्र ही गूंजने लगती हैं।

•इतना ही नहीं, जिन दंपत्तियों की संतान की मनोकामना पूर्ण हो जाती है वह भी अहोई अष्टमी के दिन...


अपनी संतान के साथ यहां राधा रानी की शरण में उपस्थिति लगाने आते हैं। माना जाता है कि यह प्रथा द्वापर युग से चली आ रही है।

🔺 राधा कुंड की कथा :

•इस प्रथा से जुड़ी एक कथा का पुराणों में भी वर्णन मिलता है जो इस प्रकार है -
जिस समय कंस ने भगवान श्री कृष्ण का वध करने के लिए...


अरिष्टासुर नामक दैत्य को भेजा था उस समय अरिष्टासुर गाय के बछड़े का रूप लेकर श्री कृष्ण की गायों के बीच में शामिल हो गया, और उन्हें मारने के लिए आया।

भगवान श्री कृष्ण ने उस दैत्य को पहचान लिया। इसके बाद श्री कृष्ण ने उस दैत्य को पकड़कर जमीन पर फैंक दिया और उसका वध कर दिया।
#Thread 1/n.
दस पवित्र पक्षी और उनका रहस्य!

आइये जाने उन दस दिव्य और पवित्र पक्षीयों के बारे मैं जिनका हिंदू धर्म में बहुत ही महत्व माना गया है

#हंस:- जब कोई व्यक्ति सिद्ध हो जाता है तो उसे कहते हैं कि इसने हंस पद प्राप्त कर लिया और जब कोई समाधिस्थ हो जाता है,

@LostTemple7


2/n..
तो कहते हैं कि वह परमहंस हो गया
परमहंस सबसे बड़ा पद माना गया है।

हंस पक्षी प्यार और पवित्रता का प्रतीक है। यह बहुत ही विवेकी पक्षी माना गया है। आध्यात्मिक दृष्टि मनुष्य के नि:श्वास में 'हं' और श्वास में 'स' ध्वनि सुनाई पड़ती है। मनुष्य का जीवन क्रम ही 'हंस' है क्योंकि

3/n..
उसमें ज्ञान का अर्जन संभव है। अत: हंस 'ज्ञान' विवेक, कला की देवी सरस्वती का वाहन है। यह पक्षी अपना ज्यादातर समय मानसरोवर में रहकर ही बिताते हैं या फिर किसी एकांत झील और समुद्र के किनारे।

हंस दांप‍त्य जीवन के लिए आदर्श है। यह जीवन भर एक ही साथी के साथ रहते हैं।

4/n..
यदि दोनों में से किसी भी एक साथी की मौत हो जाए तो दूसरा अपना पूरा जीवन अकेले ही गुजार या गुजार देती है।
जीवन अकेले ही गुजार या गुजार देती है। जंगल के कानून की तरह इनमें मादा पक्षियों के लिए लड़ाई नहीं होती। आपसी समझबूझ के बल पर ये अपने साथी का चयन करते हैं।

5/n..
इनमें पारिवारिक और सामाजिक भावनाएं पाई जाती है।

हिंदू धर्म में हंस को मारना अर्थात पिता, देवता और गुरु को मारने के समान है। ऐसे व्यक्ति को तीन जन्म तक नर्क में रहना होता है।
#मोर :- मोर को पक्षियों का राजा माना जाता है। यह शिव पुत्र कार्तिकेय का वाहन है।
क्या आप जानते हैं?

उत्तराखंड में एक ऐसा रहस्यमय मंदिर है, जहां माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है।

भारत में रहस्यमय और प्राचीन मंदिरों की कोई कमी नहीं है। एक ऐसा ही मंदिर उत्तराखंड के श्रीनगर से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।


यहां हर दिन एक चमत्कार होता है, जिसे देखकर लोग हैरान हो जाते हैं। दरअसल,इस मंदिर में मौजूद माता की मूर्ति दिन में तीन बार अपना रूप बदलती है।मूर्ति सुबह में एक कन्या की तरह दिखती है,फिर दोपहर में युवती और शाम को एक बूढ़ी महिला की तरह नजर आती है।यह नजारा हैरान कर देने वाला होता है।


इस मंदिर को धारी देवी मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर झील के ठीक बीचों-बीच स्थित है। देवी काली को समर्पित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि यहां मौजूद मां धारी उत्तराखंड के चारधाम की रक्षा करती हैं। इस माता को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भीषण बाढ़ से मंदिर बह गया था। साथ ही साथ उसमें मौजूद माता की मूर्ति भी बह गई और वह धारो गांव के पास एक चट्टान से टकराकर रुक गई। कहते हैं कि उस मूर्ति से एक ईश्वरीय आवाज निकली, जिसने गांव वालों को उस जगह पर मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया।


इसके बाद गांव वालों ने मिलकर वहां माता का मंदिर बना दिया। पुजारियों की मानें तो मंदिर में मां धारी की प्रतिमा द्वापर युग से ही स्थापित है।

कहते हैं कि मां धारी के मंदिर को साल 2013 में तोड़ दिया गया था और उनकी मूर्ति को उनके मूल स्थान से हटा दिया गया था,..