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पाटण की रानी #रुदाबाई जिसने सुल्तान बेघारा के सीने को फाड़ कर 👉#दिल निकाल लिया था, और कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था, ओर
👉धड से #सर अलग करके पाटन राज्य के बीचोबीच टांग दिया था।

गुजरात से कर्णावती के राजा थे, #राणा_वीर_सिंह_वाघेला (#सोलंकी), ईस राज्य ने कई (1/9)l


तुर्क हमले झेले थे, पर कामयाबी किसी को नहीं मिली। सुल्तान बेघारा ने सन् 1497 पाटण राज्य पर हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की 40000 से अधिक संख्या की फ़ौज 2 घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई, सुल्तान बेघारा जान बचाकर भागा।

असल मे कहते है (2/9)

सुलतान बेघारा की नजर रानी रुदाबाई पे थी, रानी बहुत सुंदर थी, वो रानी को युद्ध मे जीतकर अपने हरम में रखना चाहता था। सुलतान ने कुछ वक्त बाद फिर हमला किया।

राज्य का एक साहूकार इस बार सुलतान बेघारा से जा मिला, और राज्य की सारी गुप्त सूचनाएं सुलतान को दे दी। इस बार युद्ध मे (3/9)

राणा वीर सिंह वाघेला को सुलतान ने छल से हरा दिया जिससे राणा वीर सिंह उस युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए।

सुलतान बेघारा रानी रुदाबाई को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर 10000 से अधिक लश्कर लेकर पंहुचा। रानी रूदा बाई के पास शाह ने अपने दूत के जरिये (4/9)

निकाह प्रस्ताव रखा।

रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर छावणी बनाई थी जिसमे 2500 धर्धारी वीरांगनाये थी, जो रानी रूदा बाई का इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी, सुलतान बेघारा को महल द्वार के अन्दर आने का न्यौता दिया गया।

सुल्तान बेघारा वासना मे अंधा होकर वैसा ही किया (5/9)
🌺आचमन क्या है और इसे तीन बार ही क्यों किया जाता है ?🌺

पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है। इससे मन और हृदय की शुद्धि होती है।

धर्मग्रंथों में तीन बार आचमन करने के संबंध में कहा गया है।


प्रथमं यत् पिवति तेन ऋग्वेद प्रीणाति। यद् द्वितीयं तेन यजुर्वेदं प्रीणाति यद् तृतीयं तेन सामवेदं प्रीणाति॥

अर्थात् तीन बार आचमन करने से तीनों वेद यानी-ऋग्वेद,यजुर्वेद,सामवेद प्रसन्न होकर सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
मनु महाराज के मतानुसार
त्रिराचामेदपः पूर्वम्।
-मनुस्मृति2/60

अर्थात् सबसे पहले तीन बार आचमन करना चाहिए। इससे कंठशोषण दूर होकर, कफ़ निवृत्ति के कारण श्वसन क्रिया में व मंत्रोच्चारण में शुद्धता आती है। इसीलिए प्रत्येक धार्मिक कृत्य के शुरू में और संध्योपासन के मध्य बीच-बीच में अनेक बार तीन की संख्या में आचमन का विधान बनाया गया है।


इसके अलावा यह भी माना जाता है कि इससे कायिक, मानसिक और वाचिक तीनों प्रकार के पापों की निवृत्ति होकर न दिखने वाले फल की प्राप्ति होती है।

अंगूठे के मूल में ब्रह्मतीर्थ, कनिष्ठा के मूल प्रजापत्यतीर्थ, अंगुलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और

हाथ के मध्य भाग में सौम्यतीर्थ होता है, जो देवकर्म में प्रशस्त माना गया है। आचमन हमेशा ब्रह्मतीर्थ से करना चाहिए। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए 3 बार आचमन करने से महान फल मिलता है। आचमन हमेशा 3 बार करना चाहिए।
There are advantages and disadvantages - I don't want to go into detail since I don't want to cause any havoc right now because my perspectives on things differ. @NAN_DINI_ @UshaNirmala @ShefVaidya


The main advantage is that APMC mandis in the United States limit primary commodity sales to inside their boundaries, and these mandis have entry restrictions. The majority of the time, the mandi licence is only given to those who own a go down within the APMC.

The e-NAM was established; however, the Centre is dissatisfied with its performance due to the States' lack of enthusiasm.

When we talk about farming issues, our fears and concerns take precedence over a rational approach.

There will be no consultations between state governments and the federal government. Furthermore, agriculture is on the State List, and until recently, States have believed that agriculture trade is solely their domain.

Markets and fairs are listed as Entry 26 in the State List, and trade and commerce inside the State is listed as Entry 24 in the Concurrent List. Entry 33 deals with food trade and commerce inside the state.
शिवरात्रि पर महाकाल मंदिर का नजारा ही अलग होता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां आते हैं। महादेव की पूजा के साथ ही गौतम बुद्ध की भी उपासना करते हैं।
आइए जानते हैं क्‍या है इसके पीछे की कहानी?


महाकाल मंदिर में विराजते हैं शिव और बुद्ध। दार्जीलिंग की वादियों में ‘होली हिल’ के नाम से प्रसिद्ध स्‍थान पर स्‍थापित है महाकाल मंदिर। यहां हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायी एक साथ पूजा-अर्चना करते हैं। दो धर्मों को जोड़ने वाला यह अद्भुत मंदिर है।


महाकाल मंदिर में शिव जी और गौतम बुद्ध के अलावा छोटे-छोटे और भी मंदिर हैं। इनमें गणेश जी, काली माता, मां भगवती और हनुमान जी की प्रतिमाएं स्‍थापित हैं। इसके अलावा यहां पर एक गुफा भी है जहां बौद्ध धर्म के अनुयायी प्रार्थना करते हैं।


महाकाल मंदिर में प्रवेश करते ही स्‍वर्ग जैसी अनुभूति होने लगती है। दार्जीलिंग की खूबसूरत वादियों के बीच बसे इस बेहतरीन मंदिर को देखकर लगता है प्रकृति इसपर पूरी तरह मेहरबान है।


यहां प्रवेश द्वार पर लगे घंटें और बौद्ध धर्म के प्रतीक फ्लैग संगीत, धर्म और सुंदरता का अनुपम उदाहरण है।

मंदिर के मध्‍य भाग में बसते हैं भोलेनाथ
महाकाल मंदिर हिंदू ऑर्किटेक्‍चर का बेहतरीन उदारण है। गोलाकार में निर्मित इस मंदिर के मध्‍य भाग में शिवलिंग है।
ஸ்ரீமன் நாராயணனின் சேர்த்தியே வணங்கிட உன்னதமானது.

#முமுக்ஷுப்படி என்னும் வைணவ வியாக்கியான க்ரந்தங்களில் 'ஆக இச்சேர்த்தி உத்தேச்யமாய் விட்டது' என்ற ஒரு சூர்ணை (குறிப்பு) உள்ளது. இதன் பொருள் தாயாருடன் எம்பெருமானின் சேர்க்கையே உன்னத நோக்கம் நிறைந்தது.
@ramapriya1989 @CVeeraraghavan


இதற்கு விளக்கம் தந்த பூர்வாசிரியர்கள், 'இவர்களை தனித்தனியே பிரித்து விரும்புகை உத்தேச்யமன்று என்றபடி, இருவரையும் பிரித்து விரும்பினால் ராவணன் சூர்ப்பனைகளுக்குப் போலே அநர்த்தமே பலிக்கும் இத்தனை. இருவரையும் பற்றினாலிரே ஸ்ரீ விபீஷணனைப் போலே வாழலாவது'+

- எம்பெருமானையும் தாயாரையும் பிரித்து வழிபடுதலோ விரும்புதலோ உசிதம் அன்று.

சூர்ப்பனகை ராமனையும், இராவணன் சீதையையும் பிரித்து விரும்பியதாலேயே அழிந்து போனார்கள். திவ்ய தம்பதிகள் இருவரையும் சேர்த்து விரும்பிய விபீஷண ஆழ்வானுக்கு நல் வாழ்வு கிடைத்தது.

சில விமர்சகர்கள் மேற்சொன்ன வியாக்கியான விளக்கத்தில் சந்தேகம் எழுப்பினார்கள். சூர்ப்பனகை மற்றும் ராவணனுடைய, தாயாரையும் பெருமானையும் பிரித்து விரும்புகை, அவர்களின் தகாத காம நோக்கத்தால் ஏற்பட்டவை. அதனால் அவர்கள் அழிந்து போனார்கள்.

தாயாரையோ எம்பிரானையோ எவரும் பிரத்யேகமாக எவரோ ஒருவரை மட்டும் விரும்பி வணங்கிடுதல் தவறோ?

தம்மை நாயகியாகக் கற்பித்துக் கொண்டு நாயிகா பாவனையில் எம்பிரானை வாழ்த்திப் பாடிய ஆழ்வார்களை உள்ளடக்கிய பக்திக் கூட்டம் எம்பிரானை மட்டும் நாயகனாக வரித்து வணங்கிடுவதில் தவறென்னவோ?
Part 2

Lengthy again..

By 1974 the debate focused on whether there was a credible risk of explosion from the liquid fuel, or if this was manageable.


This risk led to the beginning of a major policy debate in the very heart of the secret state about whether this was an acceptable level of risk, or if there were alternative options open to consider.

There appears to have been a difference of opinion between different parts of government on what the right answer was in this case.

To the Royal Navy, charged with delivering the nuclear deterrent mission, the only acceptable answer was to step away from Chevaline and Polaris and upgrade to Poesidon as quickly as possible to maintain the credibility of the deterrent.

By contrast No10 was growing increasingly frustrated with what it saw as an inability by the Royal Navy to focus on delivering a capable SSBN force, & its constant demands to goldplate the solution – in one memo to the Prime Minister from his Private Secretary there is the line: