Shivpuri Dham is one of the ancient and most unique temple in Kota, Rajasthan. It has as many as 525 Shivalingas at one place. The place is thronged by pilgrims and devotees all through the year; however, the busiest time of the year is Shivratri or Rasleela.

Between the Shivalingas, there is a huge statue of God Pashupati Nath.The speciality of this temple is that the 525 Shivalingas are placed in the Swastika Formation. The bird eye view gives the perfect picture of Swastika.There is also a 14 Ton and 11 ft long Sahastra Shivalinga.
Shivpuri Dham is famous countrywide for its 525 Shivalingas. Every year lakhs of devotees visit this shrine and pilgrimage.
If you go to Rajasthan, the Shivpuri Dham of Kota is a must visit.

More from Vibhu Vashisth

प्राचीन काल में गाधि नामक एक राजा थे।उनकी सत्यवती नाम की एक पुत्री थी।राजा गाधि ने अपनी पुत्री का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र से करवा दिया।महर्षि भृगु इस विवाह से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होने अपनी पुत्रवधु को आशीर्वाद देकर उसे कोई भी वर मांगने को कहा।


सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र का वरदान मांगा।ये जानकर महर्षि भृगु ने यज्ञ किया और तत्पश्चात सत्यवती और उसकी माता को अलग-अलग प्रकार के दो चरू (यज्ञ के लिए पकाया हुआ अन्न) दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम्हारी माता पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन...

...करें और तुम भी पुत्र की इच्छा लेकर गूलर वृक्ष का आलिंगन करना। आलिंगन करने के बाद चरू का सेवन करना, इससे तुम दोनो को पुत्र प्राप्ति होगी।परंतु मां बेटी के चरू आपस में बदल जाते हैं और ये महर्षि भृगु अपनी दिव्य दृष्टि से देख लेते हैं।

भृगु ऋषि सत्यवती से कहते हैं,"पुत्री तुम्हारा और तुम्हारी माता ने एक दुसरे के चरू खा लिए हैं।इस कारण तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय सा आचरण करेगा और तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण सा आचरण करेगा।"
इस पर सत्यवती ने भृगु ऋषि से बड़ी विनती की।


सत्यवती ने कहा,"मुझे आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण सा ही आचरण करे।"तब महर्षि ने उसे ये आशीर्वाद दे दिया कि उसका पुत्र ब्राह्मण सा ही आचरण करेगा किन्तु उसका पौत्र क्षत्रियों सा व्यवहार करेगा। सत्यवती का एक पुत्र हुआ जिसका नाम जम्दाग्नि था जो सप्त ऋषियों में से एक हैं।
🌺हम सभी ने ऋषि, मुनि, महर्षि, साधु और संत जैसे शब्द तो सुने ही हैं और हम सोचते हैं कि इन सबका अर्थ एक ही है परन्तु वास्तव में इन सब मे अंतर होता है?🌺

⚜️क्या आपको पता है कि ऋषि, मुनि, महर्षि, साधु और संत जैसे शब्दों में क्या अंतर है?⚜️

आइए देखते हैं:👇


भारत में प्राचीन काल से ही ऋषि-मुनियों का विशेष महत्व रहा है।आज से सैकड़ों साल पहले 'ऋषि', 'मुनि', 'महर्षि' और 'ब्रह्मर्षि' समाज के पथ प्रदर्शक माने जाते थे। तब यही लोग अपने ज्ञान और तप के बल पर समाज कल्याण का कार्य किया करते थे और लोगों को समस्याओं से मुक्ति दिलाते थे।

आज के समय में भी हमें कई तीर्थ स्थलों, मंदिरों, जंगलों और पहाड़ों में साधु-संत देखने को मिल जाते हैं।

♨️ऋषि♨️

ऋषि शब्द की व्युत्पत्ति 'ऋष' है जिसका अर्थ 'देखना' या 'दर्शन शक्ति' होता है।


ऋषि अर्थात "दृष्टा" भारतीय परंपरा में श्रुति ग्रंथों को दर्शन करने (यानि यथावत समझ पाने) वाले जनों को कहा जाता है। वे व्यक्ति विशिष्ट जिन्होंने अपनी विलक्षण एकाग्रता के बल पर गहन ध्यान में विलक्षण शब्दों के दर्शन किये उनके गूढ़ अर्थों को जाना व मानव अथवा..

..प्राणी मात्र के कल्याण के लिये ध्यान में देखे गए शब्दों को लिखकर प्रकट किया। इसीलिये कहा गया -

⚜️“ऋषयो मन्त्र द्रष्टारः
न तु कर्तारः।”⚜️

अर्थात् ऋषि तो मंत्र के देखनेवाले हैं नकि बनानेवाले अर्थात् बनानेवाला तो केवल एक परमात्मा ही है।

More from All

Ivor Cummins has been wrong (or lying) almost entirely throughout this pandemic and got paid handsomly for it.

He has been wrong (or lying) so often that it will be nearly impossible for me to track every grift, lie, deceit, manipulation he has pulled. I will use...


... other sources who have been trying to shine on light on this grifter (as I have tried to do, time and again:


Example #1: "Still not seeing Sweden signal versus Denmark really"... There it was (Images attached).
19 to 80 is an over 300% difference.

Tweet: https://t.co/36FnYnsRT9


Example #2 - "Yes, I'm comparing the Noridcs / No, you cannot compare the Nordics."

I wonder why...

Tweets: https://t.co/XLfoX4rpck / https://t.co/vjE1ctLU5x


Example #3 - "I'm only looking at what makes the data fit in my favour" a.k.a moving the goalposts.

Tweets: https://t.co/vcDpTu3qyj / https://t.co/CA3N6hC2Lq

You May Also Like

॥ॐ॥
अस्य श्री गायत्री ध्यान श्लोक:
(gAyatri dhyAna shlOka)
• This shloka to meditate personified form of वेदमाता गायत्री was given by Bhagwaan Brahma to Sage yAgnavalkya (याज्ञवल्क्य).

• 14th shloka of गायत्री कवचम् which is taken from वशिष्ठ संहिता, goes as follows..


• मुक्ता-विद्रुम-हेम-नील धवलच्छायैर्मुखस्त्रीक्षणै:।
muktA vidruma hEma nIla dhavalachhAyaiH mukhaistrlkShaNaiH.

• युक्तामिन्दुकला-निबद्धमुकुटां तत्वार्थवर्णात्मिकाम्॥
yuktAmindukalA nibaddha makutAm tatvArtha varNAtmikam.

• गायत्रीं वरदाभयाङ्कुश कशां शुभ्रं कपालं गदाम्।
gAyatrIm vardAbhayANkusha kashAm shubhram kapAlam gadAm.

• शंखं चक्रमथारविन्दयुगलं हस्तैर्वहन्ती भजै॥
shankham chakramathArvinda yugalam hastairvahantIm bhajE.

This shloka describes the form of वेदमाता गायत्री.

• It says, "She has five faces which shine with the colours of a Pearl 'मुक्ता', Coral 'विद्रुम', Gold 'हेम्', Sapphire 'नील्', & a Diamond 'धवलम्'.

• These five faces are symbolic of the five primordial elements called पञ्चमहाभूत:' which makes up the entire existence.

• These are the elements of SPACE, FIRE, WIND, EARTH & WATER.

• All these five faces shine with three eyes 'त्रिक्षणै:'.
हिमालय पर्वत की एक बड़ी पवित्र गुफा थी।उस गुफा के निकट ही गंगा जी बहती थी।एक बार देवर्षि नारद विचरण करते हुए वहां आ पहुंचे।वह परम पवित्र गुफा नारद जी को अत्यंत सुहावनी लगी।वहां का मनोरम प्राकृतिक दृश्य,पर्वत,नदी और वन देख उनके हृदय में श्रीहरि विष्णु की भक्ति अत्यंत बलवती हो उठी।


और देवर्षि नारद वहीं बैठकर तपस्या में लीन हो गए।इन्द्र नारद की तपस्या से घबरा गए।उन्हें हमेशा की तरह अपना सिंहासन व स्वर्ग खोने का डर सताने लगा।इसलिए इन्द्र ने नारद की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को उनके पास भेज दिया।वहां पहुंच कामदेव ने अपनी माया से वसंतऋतु को उत्पन्न कर दिया।


पेड़ और पौधों पर रंग बिरंगे फूल खिल गए और कोयलें कूकने लगी,पक्षी चहकने लगे।शीतल,मंद,सुगंधित और सुहावनी हवा चलने लगी।रंभा आदि अप्सराएं नाचने लगीं ।किन्तु कामदेव की किसी भी माया का नारद पे कोई प्रभाव नहीं पड़ा।तब कामदेव को डर सताने लगा कि कहीं नारद क्रोध में आकर मुझे श्राप न देदें।

जैसे ही नारद ने अपनी आंखें खोली, उसी क्षण कामदेव ने उनसे क्षमा मांगी।नारद मुनि को तनिक भी क्रोध नहीं आया और उन्होने शीघ्र ही कामदेव को क्षमा कर दिया।कामदेव प्रसन्न होकर वहां से चले गए।कामदेव के चले जाने पर देवर्षि के मन में अहंकार आ गया कि मैने कामदेव को हरा दिया।

नारद फिर कैलाश जा पहुंचे और शिवजी को अपनी विजयगाथा सुनाई।शिव समझ गए कि नारद अहंकारी हो गए हैं और अगर ये बात विष्णु जी जान गए तो नारद के लिए अच्छा नहीं होगा।ये सोचकर शिवजी ने नारद को भगवन विष्णु को ये बात बताने के लीए मना किया। परंतु नारद जी को ये बात उचित नहीं लगी।