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भ्रामरी देवी दुर्गा के अवतारों में से एक हैं। दुर्गा के सभी अवतारों में से रक्तदंतिका, भीमा, भ्रामरी, शताक्षी तथा शाकंभरी प्रसिद्ध हैं। मां भ्रामरी की पौराणिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार, एक समय जब पृथ्‍वी पर अरुणासुर नामक दैत्य ने आतंक का माहौल पैदा किया।


अरुणासुर ने कठोर नियमों का पालन कर ब्रह्मदेव की घोर तपस्या की।तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मदेव प्रकट हुए और अरुणासुर से वर मांगने को कहा।अरुणासुर ने वर मांगा की कोई भी मुझे युद्ध में न हरा सके,न किसी अस्त्र-शस्त्र से मेरी मृत्यु हो, स्त्री-पुरुष के लिए मैं अवध्य रहूं और न ही दो व...


...चार पैर वाला प्राणी मेरा वध कर सके।
साथ ही मैं समस्त देवताओं पर विजय प्राप्त कर सकूं। ब्रह्माजी ने तथास्तु कह कर ये सब वरदान उसे दे दिए। इसके पश्चात अरुणासुर ने सर्वप्रथम स्वर्गलोक पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। देवता अरुणासुर से हारने के बाद घबराकर महादेव की शरण में आए।


महादेव ने सभी देवताओं को देवी भगवती की उपासना करने को कहा।क्योंकि वे ही अरुणासुर का अंत करने में सक्षम हैं।तब सभी देवताओं ने देवी की घोर तपस्या की।प्रसन्न होकर देवी के जिस रूप ने देवताओं को दर्शन दिए,वे चारों ओर से असंख्य भ्रमरों से घिरी हुई थीं।भ्रमर विशेष प्रकार की बड़ी...


...मधुमक्खी होती है।भ्रमरों से घिरी होने के कारण देवताओं ने उन्हें भ्रामरी देवी के नाम से सम्बोधित किया।देवताओं से पूरी बात जानने के बाद देवी ने उन्हें आश्वस्त किया कि अरुणासुर दैत्य का अंत अवश्य होगा और देवताओं का स्वर्ग पे राज पुन: स्थापित होगा।तत्पश्चात देवी भ्रामरी अरुणासुर..
#Thread
क्यूं कहते हैं कि काशी जमीन पर नहीं है, वह शिव के त्रिशूल के ऊपर है!
क्योंकि काशी एक यंत्र है एक असाधारण यंत्र!!
मानव शरीर में जैसे नाभी का स्थान है, वैसे ही पृथ्वी पर वाराणसी का स्थान है.. शिव ने साक्षात धारण कर रखा है इसे!


शरीर के प्रत्येक अंग का संबंध नाभी से जुड़ा है और पृथ्वी के समस्त स्थान का संबंध भी वाराणसी से जुड़ा है।
धरती पर यह एकमात्र ऐसा यंत्र है!! काशी की रचना सौरमंडल की तरह की गई है,
इस यंत्र का निर्माण एक ऐसे विशाल और भव्य मानव शरीर को बनाने के लिए किया गया..


जिसमें भौतिकता को अपने साथ लेकर चलने की मजबूरी न हो, और जो सारी आध्यात्मिक प्रक्रिया को अपने आप में समा ले।

आपके अपने भीतर ११४ चक्रों में से ११२ आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल १०८ चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं।

इसमें एक खास तरीके से मंथन हो रहा है। यह घड़ा यानी मानव शरीर इसी मंथन से निकल कर आया है, इसलिए मानव शरीर सौरमंडल से जुड़ा हुआ है और ऐसा ही मंथन इस मानव शरीर में भी चल रहा है।

सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी सूर्य के व्यास से 108 गुनी है। आपके अपने भीतर 114 चक्रों में से 112 आपके भौतिक शरीर में हैं, लेकिन जब कुछ करने की बात आती है, तो केवल 108 चक्रों का ही इस्तेमाल आप कर सकते हैं।
अगर आप इन 108 चक्रों को विकसित कर लेंगे...
रुद्राभिषेक पाठ एवं इसके भेद:

पूरा संसार अपितु पाताल से लेकर मोक्ष तक जिस अक्षर की सीमा नही ! ब्रम्हा आदि देवता भी जिस अक्षर का सार न पा सके उस आदि अनादी से रहित निर्गुण स्वरुप ॐ के स्वरुप में विराजमान जो अदितीय शक्ति भूतभावन कालो के भी काल गंगाधर भगवान महादेव को प्रणाम करते है।

अपितु शास्त्रों और पुरानो में पूजन के कई प्रकार बताये गए है लेकिन जब हम शिव लिंग स्वरुप महादेव का अभिषेक करते है तो उस जैसा पुण्य अश्वमेघ जैसे यग्यों से भी प्राप्त नही होता ! स्वयं श्रृष्टि कर्ता ब्रह्मा ने भी कहा है की...

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जब हम अभिषेक करते है तो स्वयं महादेव साक्षात् उस अभिषेक को ग्रहण करने लगते है। संसार में ऐसी कोई वस्तु , कोई भी वैभव , कोई भी सुख , ऐसी कोई भी वास्तु या पदार्थ नही है जो हमें अभिषेक से प्राप्त न हो सके! वैसे तो अभिषेक कई प्रकार से बताये गये है। लेकिन मुख्या पांच ही प्रकार है 👇👇

1) रूपक या षड पाठ - रूद्र के छः अंग कहे गये है इन छह अंग का यथा विधि पाठ षडंग पाठ कहा गया है।

शिव कल्प सूक्त - प्रथम हृदय रूपी अंग है

पुरुष सूक्त - द्वितीय सर रूपी अंग है

उत्तरनारायण सूक्त - शिखा है

अप्रतिरथ सूक्त - कवचरूप चतुर्थ अंग है

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मैत्सुक्त - नेत्र रूप पंचम अंग कहा गया है

शतरुद्रिय - अस्तरूप षष्ठ अंग कहा गया है

इस प्रकार - सम्पूर्ण रुद्राष्टाध्यायी के दस अध्यायों का षडडंग रूपक पाठ कहलाता है षडंग पाठ में विशेष बात है की इसमें आठवें अध्याय के साथ पांचवे अध्याय की आवृति नही होती है..

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।। हरि ॐ।।
शिव के रुद्राभिषेक से होते हैं 18 आश्चर्यजनक लाभ, जरूर पढ़े..

रुद्र अर्थात भूतभावन शिव का अभिषेक। शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं। शिव को ही 'रुद्र' कहा जाता है, क्योंकि रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र: यानी कि भोले सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं।


हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है।


और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।

रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं..


और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं।


रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली के महापाप भी जलकर भस्म हो जाते हैं और हममें शिवत्व का उदय होता है। भगवान शिव का शुभाशीर्वाद प्राप्त होता है। सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।रुद्राभिषेक के विभिन्न पूजन के लाभ इस प्रकार हैं
#श्रीकिलकारीबाबाभैरवनाथ जी पांडवों कालीन मंदिर, बाबा भैरव नाथ जी को समर्पित हैं, जोकि भगवान शिव का एक उग्र अवतार माने जाते हैं।
माना जाता है कि महाभारत के युद्ध से पहले भीम ने इस क्षेत्र में निवास करते हुए सिद्धियाँ प्राप्त की थी।
महाभारत युद्ध जीतने के बाद,पांडवों,..
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विशेषकर भीम ने इस क्षेत्र में मंदिर बनाने की शुरुआत की थी।
प्राचीन मंदिर के दो अलग-अलग खंड हैं जिनमे से एक #दुधियाभैरवमंदिर जहाँ दूध चढ़ाया जाता है,और दूसरा #किलकारीभैरवमंदिर है जहाँ शराब अर्पित की जाती है।
दुधिया भैरव मंदिर में भक्तों द्वारा बाबा भैरव नाथ पर कच्चा ..


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(बिना पका) दूध चढ़ाया जाता हैं।
किलकारी भैरव मंदिर एकमात्र मंदिर है जहाँ भक्त प्रभु को शराब चढ़ा सकते हैं। यह शराब भक्तों को स्थानीय प्रसाद के रूप में वितरित भी की जाती है। परंतु यहां मदिरा बेचने पर प्राबंधी है।
दुधिया भैरव मंदिर के महंत के अनुसार, किलकारी भैरव नाथ मंदिर


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मंदिर मे शराब चढ़ाने का कारण है कि लोग शराब की आदत छोड़ने पर अंतिम शराब भगवान पर प्रतिज्ञा के रूप में अर्पित करते हैं, तथा प्रार्थना करते है कि प्रभु उनकी इस बुरी आदत का अर्पण स्वीकार करें।
यह भक्त के ऊपर निर्भर करता है कि वो दूध अथवा मदिरा अर्पण करना चाहते है।

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इस मंदिर में सभी मूर्तियों का निर्माण संगमरमर से किया गया है।
मंदिर के मुख्य देवता, भगवान भैरव, जिनका केवल चेहरे ही हैं और बहुत बड़ी आँखें हैं।
भगवान भैरव को सिद्धियों के भंडार के रूप में भी जाना जाता है। अतः तांत्रिक सिद्धियों में रुचि रखने वाले भक्त यहाँ नियमित रूप से बाबा
💞जब केवट ने पार लगाई श्रीराम की नैया 💞
निषादराज गुह मछुआरों और नाविकों के मुखिया थे।श्रीराम को जब वनवास हुआ तो वे सबसे पहले तमसा नदी पहुंचे,जो अयोध्या से 20किमी दूर है।इसके बाद गोमती नदी पार कर वे प्रयागराज से श्रृंगवेरपुर पहुंचे,जो निषादराज का राज्य था।यहीं पर गंगा के तट पर...


..उन्होने केवट से गंगा पार कराने को कहा था।
केवट ने उन्हें उपर से नीचे तक देखा तो वे उन्हें निहारते ही रह गए और समझ गए कि ये प्रभु श्रीराम है।श्रीराम केवट से कहते हैं कि मुझे उस पार जाना है तो क्या मुझे नदिया पार करा दोगे। 

🌺मागी नाव न केवटु आना।
कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना ।।🌺

श्री राम केवट से नाव मांगते हैं पर वह लाता नहीं है।वह कहने लगा कि मैंने तुम्हारा भेद जान लिया है।तुम्हारे चरण कमलों की धूल के लिए सब लोग कहते हैं कि वह मनुष्य बना देने वाली कोई जड़ी है।जिसके छूते ही पत्थर की शिला सुंदर स्त्री हो गई तो मेरी नाव तो काठ की है।काठ तो पत्थर से कठोर...


...भी नहीं होता।यदि मेरी नाव का आपके चरणों से स्पर्श हो गया तो कदाचित वह भी सुन्दर स्त्री हो जाएगी और मेरी रोजी मारी जाएगी।मैं तो लूट जाऊंगा।मैं तो इस नाव के सहारे ही परिवार का भरण पोषण करता हूं,दूसरा कोई धंधा नहीं जानता।

🌺जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू।
मोहि पद पदुम पखारन कहहू।।🌺

हे प्रभु!यदि आप अवश्य ही पार जाना चाहते हैं तो मुझे पहले अपने चरण कमल पखार लेने दीजिए।

🌺पद कमल धोइ चढ़ाइ नाव न नाथ उतराई चहौं। मोहि राम राउरि आन दसरथसपथ सब साची कहौं।।
बरू तीर मारहुं लखनु पै जब लागि न पाय पखारिहौं ।।🌺
श्रीकृष्‍ण के पांचजन्‍य शंख का रहस्‍य
#Thread
पाञ्चजन्य बहुत दुर्लभ शंख है। समुद्र मंथन के दौरान इस पाञ्चजन्य शंख की उत्पत्ति हुई थी। समुद्र मंथन से प्राप्त 14 रत्नों में से 6वां रत्न शंख था। श्रीकृष्‍ण के गुरु सन्दीपनी ऋषि के पुत्र पुनरदत्त को एक दैत्य शंखासुर उठा ले गया।


उसी गुरु पुत्र को लेने के लिए वे दैत्य नगरी गए। वहां उन्होंने देखा कि एक शंख में दैत्य सोया है। उन्होंने दैत्य को मारकर शंख को अपने पास रखा और फिर जब उन्हें पता चला कि उनका गुरु पुत्र तो यमपुरी चला गया है तो वे भी यमपुरी चले गए। वहां यमदूतों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया


तब उन्होंने शंख का नाद किया जिसके चलते यमलोक हिलने लगा।फिर यमराज ने खुद आकर श्रीकृष्ण को उनके गुरु पुत्र की आत्मा को लौटा दिया। भगवान श्रीकृष्ण बलराम और अपने गुरु पुत्र के साथ पुन: धरती पर लौट आए और उन्होंने गुरु पुत्र के साथ ही पाञ्चजन्य शंख को भी गुरु को समक्ष प्रस्तुत कर दिया।


गुरु ने पाञ्चजन्य को पुन: श्रीकृष्ण को देते हुए कहा कि यह तुम्हारे लिए ही है। तब गुरु की आज्ञा से उन्होंने इस शंख का नाद कर पुराने युग की समाप्ति और नए युग का प्रारंभ किया।

#पाञ्चजन्य शंख की शक्ति
भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी। कहते हैं कि महाभारत युद्ध में अपनी ध्वनि से पांडव सेना में उत्साह का संचार करने वाले इस शंख की ध्वनि से संपूर्ण युद्ध भूमि में शत्रु सेना में भय व्याप्त हो जाता था।
#MangalPandey
(19 July, 1827)
A heartful tribute to the First Freedom Fighter MangalPandey on his Birth Anniversary, who's sacrifice sparked the revolt of 1857. His sacrifice and courage will always be remembered. 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


Born on 19 July 1827 at Nagwa, Ballia district, of UP and Sacrificed his life on 8 April 1857 (aged 29) Barrackpore, Calcutta, Bengal Province, British India.

Mangal Pandey was an Indian soldier who played a key part in events immediately preceding the outbreak of the Indian rebellion of 1857. He was a sepoy in the 34th Bengal Native Infantry regiment of the British East India Company.

Remembering some of his famous quotes on his birth anniversary to pay him a warm tribute for his supreme sacrifice for our Great Nation.

1- आज तक आपने हमारी वफादारी देखी थी अब हमारा क्रोध देखिये।

2- यह आज़ादी की लड़ाई है, ग़ुज़रे हुए कल से आज़ादी,आने वाले कल के लिए।

3- बन्दूक बड़ी बेवफा माशूका होती है कब किधर मुँह मोड़ ले कोई भरोसा नहीं।

4- किसी भी धर्म के लोगों का गोंमांस खाना एक पाप है, और यदि आप हिन्दू है तो ये एक कलंक भी है।

5-हमारी आज़ादी के लिए लड़ाई एक चिंगारी है जो भविष्य में विकराल रूप लेगी।

🇮🇳🇮🇳🇮🇳Bharat Mata ki Jai🇮🇳🇮🇳🇮🇳