#श्रीकिलकारीबाबाभैरवनाथ जी पांडवों कालीन मंदिर, बाबा भैरव नाथ जी को समर्पित हैं, जोकि भगवान शिव का एक उग्र अवतार माने जाते हैं।
माना जाता है कि महाभारत के युद्ध से पहले भीम ने इस क्षेत्र में निवास करते हुए सिद्धियाँ प्राप्त की थी।
महाभारत युद्ध जीतने के बाद,पांडवों,..
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विशेषकर भीम ने इस क्षेत्र में मंदिर बनाने की शुरुआत की थी।
प्राचीन मंदिर के दो अलग-अलग खंड हैं जिनमे से एक #दुधियाभैरवमंदिर जहाँ दूध चढ़ाया जाता है,और दूसरा #किलकारीभैरवमंदिर है जहाँ शराब अर्पित की जाती है।
दुधिया भैरव मंदिर में भक्तों द्वारा बाबा भैरव नाथ पर कच्चा ..
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(बिना पका) दूध चढ़ाया जाता हैं।
किलकारी भैरव मंदिर एकमात्र मंदिर है जहाँ भक्त प्रभु को शराब चढ़ा सकते हैं। यह शराब भक्तों को स्थानीय प्रसाद के रूप में वितरित भी की जाती है। परंतु यहां मदिरा बेचने पर प्राबंधी है।
दुधिया भैरव मंदिर के महंत के अनुसार, किलकारी भैरव नाथ मंदिर
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मंदिर मे शराब चढ़ाने का कारण है कि लोग शराब की आदत छोड़ने पर अंतिम शराब भगवान पर प्रतिज्ञा के रूप में अर्पित करते हैं, तथा प्रार्थना करते है कि प्रभु उनकी इस बुरी आदत का अर्पण स्वीकार करें।
यह भक्त के ऊपर निर्भर करता है कि वो दूध अथवा मदिरा अर्पण करना चाहते है।
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इस मंदिर में सभी मूर्तियों का निर्माण संगमरमर से किया गया है।
मंदिर के मुख्य देवता, भगवान भैरव, जिनका केवल चेहरे ही हैं और बहुत बड़ी आँखें हैं।
भगवान भैरव को सिद्धियों के भंडार के रूप में भी जाना जाता है। अतः तांत्रिक सिद्धियों में रुचि रखने वाले भक्त यहाँ नियमित रूप से बाबा
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बाबा के दर्शन के लिए आते रहते हैं।
कुत्ते भगवान भैरव का वाहन माने जाते है, इसलिए मंदिर परिसर में अनेक कुत्ते घूमते हुए मिलना स्वाभाविक है।
दिल्ली में मनाई जाने वाली भैरव जयंती यहाँ का प्रमुख त्यौहार है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं।
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जिसके अंतर्गत दोपहर मे पंखा यात्रा, तदुपरांत शाम को विशाल भोग-भंडारे का आयोजन किया जाता है।

बटुक और किलकारी बाबा भैरों नाथ मंदिर के बीच जुड़ा रहस्य:
जिन मंदिरों को दिल्ली में पांडवों ने बनवाया था उनमे एक और नाम हैं बटुक भैरों नाथ मंदिर जो भगवान भैरों को समर्पित है।
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यह मंदिर दिल्ली के नेहरू पार्क चाणक्य पुरी मे स्थित है।
इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि यह लगभग 5500 साल पुराना है किन्तु मंदिर की बनावट बहुत पुरानी नहीं है क्योंकि समय-समय पर इस मंदिर का पुनिर्माण किया जाता रहा है।

ऐसा माना जाता है कि पांडवों ने अपने किले की
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सुरक्षा के लिए कई बार यज्ञ का आयोजन करवाया था लेकिन राक्षस यज्ञ को बार-बार भंग कर दिया करते थे।
इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने सुझाव दिया कि किले की सुरक्षा के लिए भगवान भैरों को किले में स्थिपित किया जाए।
तब भीम,भैरों बाबा को लाने के लिए काशी गए।
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भीम ने बाबा की अराधना की और बाबा से इन्द्रप्रथ चलने की विनती की। बाबा ने भीम के समक्ष एक शर्त रखी और कहां कि वह जहाँ भी उन्हें पहले रख देगें वे वहीं विराजमान हो जाएंगे और वे वहां से आगे नहीं जाएंगे।
भीम ने भगवान की यह शर्त मान ली और बाबा को अपने कंधे पर बिठा कर चल दिए।
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माना जाता है की इस स्थान पर आकर बाबा भैरों ने ऐसी माया कर दी की भीम को मजबूर होकर उन्हें अपने कंधे से नीचे उतारना पड़ गया। तब भीम ने फिर से अराधना की और उनसे आगे चलने की विनती की लेकिन बाबा आगे नहीं गए।
भीम के बार-बार विनती करने पर बाबा ने भीम को किले की सुरक्षा हेतु अपनी
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जटा काट कर दे दी और कहां कि इसे किल में स्थपित करें और वो यहीं से किलकारी मार कर किले की सुरक्षा करेंगे।
वहीं स्थान आज किलकारी बाबा भैंरो नाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इस प्रकार इन दोनों मंदिरों का इतिहास आपस में जुड़ा हुआ माना जाता है।

Source: various articles & sites

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#प्राचीनहनुमानमंदिर
प्राचीन हनुमान मंदिर, महाभारत काल से बाल हनुमान को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है। यह दिल्ली में पांडवों द्वारा स्थापित पांच मंदिरों में से एक माना जाता है।
दिल्ली का ऐतिहासिक नाम इंद्रप्रस्थ शहर है,


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जो यमुना नदी के तट पर पांडवों द्वारा महाभारतकाल में बसाया गया था तथा तब पांडव इंद्रप्रस्थ और कौरव हस्तिनापुर पर राज्य करते थे।हिन्दू मान्यता के अनुसार पांडवों में भीम को हनुमानजी का भाई माना जाता है।दोनों ही वायुपुत्र कहे जाते हैं और उनकी हनुमान जी पर असीम आस्था थी।


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इसका जीर्णोद्धार दो बार कराया गया -
1540 - 1614 महाराजा मानसिंह प्रथम
1688 - 1743 जय सिंह द्वितीय
वर्तमान हनुमान मंदिर का स्वरूप सन 1724 में श्रद्धालुओं के सम्मुख आया जब जयपुर रियासत के महाराज जयसिंह ने इसका फिर से जीर्णोद्धार करवाया था।

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इस मंदिर के इतिहास के संबंध में कहते है कि राजा जयसिंह मौजूदा हनुमान मंदिर परिसर में अपने किसी भवन का निर्माण करवा रहे थे। उस दौरान यहां पर स्वयंभू हनुमान की मूर्ति प्रकट हुई थी। इसमें हनुमानजी दक्षिण दिशा की ओर देख रहे हैं। इसमें उनकी सिर्फ एक ही आंख दिखाई दे रही है।


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अतः ये दक्षिणामुखी हनुमान जी भी कहलाते है।
यहाँ के महंत मंदिर की पिछली 33 पीढ़ियां से सेवा करते आ रहे हैं और इनका परिवार आमेर के राजा जयसिंह के आमंत्रण पर सन् 1724 में यहां आया था।
महंत मदन लाल शर्मा:
महंतजी की ही पहल पर हनुमान मंदिर में 1 अगस्त,1964 से
#जयमाँझंडेवाली
राजधानी दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवालान एक सिद्धपीठ है।
यह प्राचीन मंदिर अरावली पर्वत की श्रृंखलाओं में से एक श्रृंखला में स्थित है।
मंदिर का इतिहास करीब 100 साल पुराना है
माता झंडेवाली यहाँ माँ लक्ष्मी के स्वरूप में विद्यमान हैं जिनके एक तरफ मां काली हैं..1


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और दूसरी तरफ मां सरस्वती हैं।
मंदिर के इतिहास की बात करें तो 100 साल से भी पहले दिल्ली के एक व्यापारी श्री बद्री भगत थे,जो धार्मिकवृत्ति के तथा वैष्णों माता के परम भक्त थे।
बद्री दास जी इस जगह नियमित रूप से सैर करने आते थे तथा यही पर ध्यान में लीन हुआ करते थे।


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एक दिन जब बद्री दास मां भगवती की साधना में लीन थे तो उन्हें अनुभूति हुई कि यहां पर एक प्राचीन मंदिर है जो कि जमीन में धंसा हुआ है।
कुछ समय बाद उन्हें फिर सपने में वह मंदिर दिखाई दिया।
बद्री दास जी ने वहां जमीन खरीद कर, खुदाई आरम्भ करवाई।
थोड़ी ही खुदाई के पश्चात्‌ मंदिर के..


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अवशेष मिलने प्रारम्भ हो गए। इसके पश्चात्‌ खुदाई का कार्य तेज करवा दिया गया। खुदाई करवाते समय उन्हें मंदिर के शिखर पर झंडा दिखा, और उसके बाद खुदाई में माँ की मूर्ति प्राप्त हुई। मगर खुदाई में माँ के हाथ खंडित हो गए।
मूल मूर्ति के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान


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ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया गया और खंडित हाथो को चांदी के हाथ पिरोह दिए गए।
दूसरी चट्टान की खुदाई में शिवलिंग दिखाई पड़ा, मगर खंडित ना हो इस भय से उसे वही रहने दिया गया, आज भी वह शिवलिंग मंदिर की गुफा में स्थित है।
जिस स्थान पर माता की मूर्ति मिली थी उसी के ठीक...

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