If you showed someone this Tweet last year, who would they think won the election?

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Master Thread of all my threads!

Hello!! 👋

• I have curated some of the best tweets from the best traders we know of.

• Making one master thread and will keep posting all my threads under this.

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1. 7 FREE OPTION TRADING COURSES FOR


2. THE ABSOLUTE BEST 15 SCANNERS EXPERTS ARE USING

Got these scanners from the following accounts:

1. @Pathik_Trader
2. @sanjufunda
3. @sanstocktrader
4. @SouravSenguptaI
5. @Rishikesh_ADX


3. 12 TRADING SETUPS which experts are using.

These setups I found from the following 4 accounts:

1. @Pathik_Trader
2. @sourabhsiso19
3. @ITRADE191
4.


4. Curated tweets on HOW TO SELL STRADDLES.

Everything covered in this thread.
1. Management
2. How to initiate
3. When to exit straddles
4. Examples
5. Videos on
#தினம்_ஒரு_திருவாசகம்
தொல்லை இரும்பிறவிச் சூழும் தளை நீக்கி
அல்லல் அறுத்து ஆனந்தம் ஆக்கியதே – எல்லை
மருவா நெறியளிக்கும் வாதவூர் எங்கோன்
திருவாசகம் என்னும் தேன்

பொருள்:
1.எப்போது ஆரம்பித்தது என அறியப்படமுடியாத தொலை காலமாக (தொல்லை)

2. இருந்து வரும் (இரும்)


3.பிறவிப் பயணத்திலே ஆழ்த்துகின்ற (பிறவி சூழும்)

4.அறியாமையாகிய இடரை (தளை)

5.அகற்றி (நீக்கி),

6.அதன் விளைவால் சுகதுக்கமெனும் துயரங்கள் விலக (அல்லல் அறுத்து),

7.முழுநிறைவாய்த் தன்னுளே இறைவனை உணர்த்துவதே (ஆனந்த மாக்கியதே),

8.பிறந்து இறக்கும் காலவெளிகளில் (எல்லை)

9.பிணைக்காமல் (மருவா)

10.காக்கும் மெய்யறிவினைத் தருகின்ற (நெறியளிக்கும்),

11.என் தலைவனான மாணிக்க வாசகரின் (வாதவூரெங்கோன்)

12.திருவாசகம் எனும் தேன் (திருவா சகமென்னுந் தேன்)

முதல்வரி: பிறவி என்பது முன்வினை விதையால் முளைப்பதோர் பெருமரம். அந்த ‘முன்வினை’ எங்கு ஆரம்பித்தது எனச் சொல்ல இயலாது. ஆனால் ‘அறியாமை’ ஒன்றே ஆசைக்கும்,, அச்சத்துக்கும் காரணம் என்பதால், அவையே வினைகளை விளைவிப்பன என்பதால், தொடர்ந்து வரும் பிறவிகளுக்கு, ‘அறியாமையே’ காரணம்

அறியாமைக்கு ஆரம்பம் கிடையாது. நமக்கு ஒரு பொருளைப் பற்றிய அறிவு எப்போதிருந்து இல்லை? அதைச் சொல்ல முடியாது. அதனாலேதான் முதலடியில், ஆரம்பமில்லாத அஞ்ஞானத்தை பிறவிகளுக்குக் காரணமாகச் சொல்லியது. ஆனால் அறியாமை, அறிவின் எழுச்சியால், அப்போதே முடிந்து விடும்.

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शमशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायी और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में अपने तीन वर्ष के बालक को रख के स्वयं चिता पे बैठ कर सती हो गयी ।इस प्रकार ऋषी दधीचि और उनकी पत्नी की मुक्ति हो गयी।


परन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़पने लगा। जब कुछ नहीं मिला तो वो कोटर में पड़े पीपल के गोदों (फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के फलों और पत्तों को खाकर बालक का जीवन किसी प्रकार सुरक्षित रहा।

एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजर रहे थे ।नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देख कर उसका परिचय मांगा -
नारद बोले - बालक तुम कौन हो?
बालक - यही तो मैं भी जानना चहता हूँ ।
नारद - तुम्हारे जनक कौन हैं?
बालक - यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।

तब नारद ने आँखें बन्द कर ध्यान लगाया ।


तत्पश्चात आश्चर्यचकित हो कर बालक को बताया कि 'हे बालक! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो । तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्रास्त्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी।तुम्हारे पिता की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी'।

बालक - मेरे पिता की अकाल मृत्यु का क्या कारण था?
नारद - तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।
बालक - मेरे उपर आयी विपत्ति का कारण क्या था?
नारद - शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर बड़े हुए उस बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।
शमशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायी और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में अपने तीन वर्ष के बालक को रख के स्वयं चिता पे बैठ कर सती हो गयी ।इस प्रकार ऋषी दधीचि और उनकी पत्नी की मुक्ति हो गयी।


परन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़पने लगा। जब कुछ नहीं मिला तो वो कोटर में पड़े पीपल के गोदों (फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के फलों और पत्तों को खाकर बालक का जीवन किसी प्रकार सुरक्षित रहा।

एक दिन देवर्षि नारद वहां से गुजर रहे थे ।नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देख कर उसका परिचय मांगा -
नारद बोले - बालक तुम कौन हो?
बालक - यही तो मैं भी जानना चहता हूँ ।
नारद - तुम्हारे जनक कौन हैं?
बालक - यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ ।

तब नारद ने आँखें बन्द कर ध्यान लगाया ।


तत्पश्चात आश्चर्यचकित हो कर बालक को बताया कि 'हे बालक! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो । तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्रास्त्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी।तुम्हारे पिता की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी'।

बालक - मेरे पिता की अकाल मृत्यु का क्या कारण था?
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बालक - मेरे उपर आयी विपत्ति का कारण क्या था?
नारद - शनिदेव की महादशा।
इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर बड़े हुए उस बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।