#मठ_का_महंत
मर्यादा पुरुषोत्तम महाराज श्री राम की राज्य सभा इंद्र, यम और वरुण की सभा के समकक्ष थी। एक दिन श्री लक्ष्मण जी को प्रभु ने आज्ञा दी कि देखो बाहर कोई व्यवहारी या प्रर्थी तो नहीं है,
कोई हो तो बुला कर लाओ और उसकी बात सुनी जाए।
जब श्री लक्ष्मण जी ने देखा तो मनुष्य तो कोई दरवाजे पर नहीं था किन्तु एक दुःखी श्वान खड़ा था। श्री लक्ष्मण जी ने उसे प्रभु के सामने लाये, श्रीराम ने देखा उसके मुस्तक में छोट लगी हुई थी महाराज ने उसे पुछा बतलाओ तुम्हें क्या कष्ट है,मैं तुम्हारा समाधान तत्काल कर देता हूँ ।
श्वान बोला, मैंने कोई अपराध नहीं किया तब भी सर्वार्थसिद्धि नमक ब्राह्मण ने मेरे मस्तक पर प्रहार किया, मैं इस्का न्याय कराने आपके पास आया हूं। महाराज ने ब्राह्मण को बुलाकर पूछा तुम्हारे किस अपराध पर प्रहार किया?
वह बोला, मैं ब्राह्मण हूं, भिक्षाटन के लिए जा रहा था, यह मेरे मार्ग में आ गया और भूख से व्यकुल होने के कारण मुझे क्रोध में गया... मैं अपराधी हूं, आप न्याय करें । तब श्वान ने श्री राम से कहा यदि आप मुझ पर प्रसन्न हो और आपकी आज्ञा हो तो मेरी प्रार्थना है...
कि ब्राह्मण का कलंजर मठ के कुलपति पद पर अभिषेक कर दिया जाए।
ब्राह्मण को सम्मान पूर्वक हाथी पर चढ़ा कर भेज दिया गया। सभा में सब ने आश्चर्य से पूछा, तुमने उसे श्राप क्यों नहीं दे डाला?
श्वान बोला, आप लोगों को इसका रहस्य विदित नहीं है, मैं पूर्व जन्म में वहीं का कुलपति था।