प्रश्न = इतिहास में पाशुपतास्त्र कब कब इस्तेमाल हुआ ?

पाशुपतास्त्र बहुत विध्वंसक महास्त्र है और इतिहास में केवल कुछ लोग ही थे जिनके पास ये अस्त्र था। उसपर भी बहुत कम लोगों ने इस अस्त्र का उपयोग किया। पाशुपतास्त्र के उपयोग का सबसे बड़ा नियम ये था कि उसे अपने से निर्बल अथवा

किसी निःशस्त्र योद्धा पर नहीं चलाया जा सकता था। अगर ऐसा किया जाता तो पाशुपतास्त्र वापस चलाने वाले का ही नाश कर देता था। ऐसी मान्यता है कि जब सृष्टि का समय पूर्ण हो जाता है तो महादेव सृष्टि का विनाश पाशुपतास्त्र और अपने तीसरे नेत्र से ही करते हैं।
इसके अतिरिक्त जहाँ ब्रह्मास्त्र का निवारण दूसरे ब्रह्मास्त्र से और नारायणास्त्र का निवारण दूसरे नारायणास्त्र अथवा निःशस्त्र होकर किया जा सकता था, वही पाशुपतास्त्र का कोई निवारण नहीं था। इसके द्वारा किये गए विध्वंस को वापस ठीक नहीं किया जा सकता था।
यही कारण है कि त्रिदेवों के तीन महास्त्रों (ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र और पाशुपत) में पाशुपतास्त्र को सबसे विनाशकारी माना गया है। सबसे पहले पाशुपतास्त्र का उपयोग भगवान शंकर द्वारा ही सतयुग में हुआ जिससे उन्होंने त्रिपुर का संहार किया।
ऐसी मान्यता है कि उन्होंने पाशुपतास्त्र का निर्माण ही केवल इस कार्य के लिए किया था। त्रेतायुग में इस महान अस्त्र के पांच लोगों के पास होने की जानकारी मिलती है - विश्वामित्र, भगवान परशुराम, रावण, मेघनाद और श्रीराम इनमें से मेघनाद को छोड़ कर बांकी चारों के पास पाशुपतास्त्र होने
में विवाद है क्यूंकि ऐसा वर्णन वाल्मीकि रामायण में नहीं मिलता है। विश्वामित्र, भगवान परशुराम, रावण और श्रीराम के पास पाशुपतास्त्र होने का वर्णन रामायण के अन्य संस्करणों (कम्ब, आनंद) और लोक कथाओं में मिलता है। जबकि मेघनाद के पास इस महास्त्र के होने में कोई विवाद नहीं है।
विश्वामित्र: आनंद रामायण के अनुसार विश्वामित्र ने अपनी तपस्या से महादेव को प्रसन्न कर पाशुपत प्राप्त किया था। हालाँकि उन्होंने कभी उसका उपयोग नहीं किया  कहते हैं कि भगवान परशुराम के पास तीनों महास्त्र - ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र और पाशुपतास्त्र थे।
हालाँकि उनके पास पाशुपतास्त्र होने में विवाद है किन्तु तेलुगु भाषा के कम्ब रामायण में इसका उल्लेख मिलता है। इनके द्वारा भी इस अस्त्र के उपयोग का वर्णन नहीं मिलता है। रावण: कम्ब रामायण के ही अनुसार रावण को ये अस्त्र महादेव ने दिया था, हालाँकि इसकी कोई पुष्टि नहीं की जा सकती।
उसने इस अस्त्र को निहत्थे श्रीराम पर चला दिया था और नियम के अनुसार पाशुपत को निहत्थे शत्रु पर नहीं चलाया जा सकता था। इसी कारण उसके पश्चात ये अस्त्र श्रीराम के अधीन हो गया। श्रीराम के पास ब्रह्मास्त्र और नारायणास्त्र था किन्तु पाशुपतास्त्र के होने का कोई वर्णन वाल्मीकि रामायण
में नहीं है। हालाँकि ऊपर की कथा को सत्य मानें तो उनके पास भी ये अस्त्र था।

मेघनाद: यही निर्विवाद रूप से एकमात्र ऐसा योद्धा था जिसके पास तीनों महास्त्र - ब्रह्मास्त्र, नारायणास्त्र एवं पाशुपतास्त्र थे। लंका युद्ध मे उसने ये तीनों महान अस्त्र लक्ष्मण पर चलाये थे किंतु
त्रिदेवों की कृपा से ये तीनो अस्त्र उन्हें हानि ना पहुंचा सके और वापस अपने लोकों को लौट गए। द्वापरयुग में अर्जुन ने ये दिव्यास्त्र महादेव से प्राप्त किया था। किंतु अर्जुन ने कभी इस अस्त्र का प्रयोग नही किया तो अगर देखा जाये तो मेघनाद और अर्जुन ही ऐसे दो योद्धा हैं
जिनके पास पाशुपतास्त्र के होने में कोई संदेह या विवाद नहीं है। कुछ लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि स्टार प्लस वाले नए महाभारत में अर्जुन को जयद्रथ का वध करने के लिए पाशुपतास्त्र का प्रयोग करते दिखाया गया है। उन्हें मेरी सलाह है कि आज कल के फैंसी सीरियल के चक्कर में ना पड़ें
क्यूंकि उनमे और सास-बहु के सीरियल में कोई फर्क नहीं रह गया है।

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प्रश्न = किस तरह से चौरासी लाख योनियों के चक्र का शास्त्रों में वर्णन है ?

धर्म शास्त्रों और पुराणों में 84 लाख योनियों का उल्लेख मिलता है और इन योनियों को दो भागों में बाटां गया है। पहला- योनिज और दूसरा आयोनिज।


1- ऐसे जीव जो 2 जीवों के संयोग से उत्पन्न होते हैं वे योनिज कहे जाते हैं। 2- ऐसे जीव जो अपने आप ही अमीबा की तरह विकसित होते हैं उन्हें आयोनिज कहा गया है

3- इसके अतिरिक्त स्थूल रूप से प्राणियों को भी 3 भागों में बांटा गया है-

1- जलचर- जल में रहने वाले सभी प्राणी।

2- थलचर- पृथ्वी पर विचरण करने वाले सभी प्राणी।

3- नभचर- आकाश में विहार करने वाले सभी प्राणी। उक्त 3 प्रमुख प्रकारों के अंतर्गत मुख्य प्रकार होते हैं अर्थात 84 लाख योनियों में प्रारंभ में निम्न 4 वर्गों में बांटा जा सकता है।

1- जरायुज- माता के गर्भ से जन्म लेने वाले मनुष्य, पशु जरायुज कहलाते हैं।

2- अंडज- अंडों से उत्पन्न होने वाले प्राणी अंडज कहलाते हैं।
3- स्वदेज- मल-मूत्र, पसीने आदि से उत्पन्न क्षुद्र जंतु स्वेदज कहलाते हैं।

4- उदि्भज: पृथ्वी से उत्पन्न प्राणी उदि्भज कहलाते हैं।

पदम् पुराण के एक श्लोकानुसार...जलज नव लक्षाणी, स्थावर लक्ष विम्शति, कृमयो रूद्र संख्यक:।

पक्षिणाम दश लक्षणं, त्रिन्शल लक्षानी पशव:, चतुर लक्षाणी मानव:।।

जलचर 9 लाख, स्थावर अर्थात पेड़-पौधे 20 लाख, सरीसृप, कृमि अर्थात कीड़े-मकौड़े 11 लाख, पक्षी/नभचर 10 लाख,
प्रश्न : पृथ्वी से 28 लाख गुना भगवान श्री सूर्य नारायण को श्री हनुमान जी कैसे निगल गये थे ? क्या यह विज्ञान के साथ मजाक नहीं है ?

नही विज्ञान के साथ मजाक नही बल्कि यही तो विज्ञान का सबसे मूल आधार है जो हमारा सनातन धर्म डंके की चोट पर कह रहा है।


खुले मस्तिष्क के साथ इस बात को समझेंगे तो बहुत कुछ रहस्य समझ में आयेंगे..

मित्रो सूर्य भी रुद्र और हनुमानजी भी रुद्र तथा ये समूचा दृश्यमान जगत भी तो रुद्र का एक अंश मात्र ही है फिर एक रुद्र ने दूसरे रुद्र को अपने में समाहित कर भी लिया तो रुद्र ही शेष रहेंगे ना?

बात अभी समझ नही आई होगी आपको, कोई बात नही, पहले हम इस रुद्र के कॉन्सेप्ट को समझे की कैसे सूर्य एवम् हनुमान दोनो रुद्र ही है। अब पहला प्रश्न आएगा की सूर्यदेव रुद्र कैसे? सूर्यदेव भला किस प्रकार शिव के स्वरूप है?

प्रमाण के लिए यजुर्वेद के दो मंत्र देखिए:


मंत्र क्रमांक 5 का शब्द अर्थ:

उदय के समय ताम्रवर्ण (अत्यन्त रक्त), अस्तकाल में अरुणवर्ण (रक्त), अन्य समय में वभ्रु (पिंगल) – वर्ण तथा शुभ मंगलों वाला जो यह सूर्यरूप है, वह रुद्र ही है. किरणरूप में ये जो हजारों रुद्र इन आदित्य के सभी ओर स्थित हैं,

इनके क्रोध का हम अपनी भक्तिमय उपासना से निवारण करते हैं। मंत्र क्रमांक 6 का शब्द अर्थ:

जिन्हें अज्ञानी गोप तथा जल भरने वाली दासियाँ भी प्रत्यक्ष देख सकती हैं, विष धारण करने से जिनका कण्ठ नीलवर्ण का हो गया है, तथापि विशेषत: रक्तवर्ण होकर जो सर्वदा उदय और अस्त को प्राप्त
प्रश्न = विदुर नीती किसे कहते हैं और कुछ विदुर नीतियां जो आज के परिवेश में लागू हो सकतीं हैं वो कौन सी हैं ?

महाभारत में विदुर को एक अच्छे व सुलझे हुए पात्र के रूप में देखा जाता है। इनकी तेज बुद्धि और ज्ञान का मुकाबला करना मुश्किल था।


इसलिये वे धृतराष्ट्र के भी सलाहकार बने। ये अलग बात थी कि जिसकी बुद्धि को मोह और लालच ने हर लिया हुआ, उसको कितना भी समझा लो कोई असर नहीं होता।

महाभारत युद्ध से पूर्व धृतराष्ट्र और विदुर के बीच में जो संवाद हुआ था उसे ही विदुर नीति कहते हैं।

विदुर नीति जीवन में बहुत बड़ी नसीहत देती है जैसे व्यक्ति का आचरण कैसा होना चाहिए और एक मनुष्य के तौर पर व्यक्ति की जिम्मेदारी क्या होती है इत्यादि।

उनकी कुछ नीतियां जो आज भी उपयोगी हैं

विदुर नीति के मुताबिक ऐसे लोग जो पद यानी अपने ओहदे के नशे में चूर होकर घंमड में डूब जाते हैं, ऐसे व्यक्ति बहुत जल्द पतन की ओर अग्रसर हो जाते हैं।

जो व्यक्ति दूसरों का अहित करता है उसे जीवन में एक न एक दिन संकटों से गुजरना पड़ता है।

जो ईष्र्या और लालच के चलते दूसरों को नुकसान पहुंचाने लगता है, दूसरों को नुकसान पहुंचाने के चलते वह स्वयं की नजरों में कितना गिर जाता है। इसी से दूसरे लोग उससे किनारा करने लगते हैं क्योंकि समाज में ऐसे व्यक्ति की विश्वसनीयता समाप्त हो जाती है।
प्रश्न = गीता का वो कोनसा महत्वपूर्ण श्लोक है जिसका अर्थ गलत समझा जाता रहा है ?


अपना काम करो, फल की चिंता मत करो!

यह बात अपने आसपास के लोगों से आपने बहुत बार सुनी होगी ?

उनसे यदि पूछें कि ऐसा किसने कहा है 🤔, तो उनका जवाब होगा, "अरे! गीता में श्रीकृष्ण ने बताया है

अद्भुत बात यह है कि गीता पढ़े बिना हम सबको पता है कि गीता में श्रीकृष्ण ने क्या-क्या कहा है

देखते हैं कि यह बात कहाँ से आ रही है,

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

अर्थात = कर्म करने में ही तेरा अधिकार है, फलों में कभी नहीं। तो लोगों ने इस श्लोक का अर्थ लगाया कि फल की परवाह करे बिना बस कर्म करते चलो।

पर कौन-सा कर्म करें? इस बात को हम बिल्कुल दबा गए

जबकि श्रीकृष्ण के उपदेश में यही बात (सही कर्म का चयन) सर्वोपरि है।

नतीजा: हम ज़्यादातर गलत काम चुनते हैं, और फिर कहते हैं, "बस अपना काम करे चलो डूबकर, और फल की चिंता मत करो"। ये बात गलत और नुकसानदेह है।

सबसे पहले आता है सही कर्म का चयन। सही कर्म कौन सा है? सही कर्म वो है जो

अपनी व्यक्तिगत कामना की पूर्ति के लिए न किया जाए, बल्कि कृष्ण (सत्य) के लिए किया जाए। यही निष्कामता है।

पर अपनी कामना को पीछे छोड़ना हमें स्वीकार नहीं होता, तो काम तो हम करते हैं कामनापूर्ति के लिए, और फिर ऐसे काम में जब तनाव और दुख मिलता है, तो खुद को बहलाने के लिए कह देते हैं
वेदों के अनुसार हमारे ब्रह्मांड की आयु :

1 महायुग = 4,320,000 मानव वर्ष

1 मन्वंतर = 71 महायुग

ब्रह्मा का 1 दिन = 14 मन्वंतर = 14 x 71= 994 महायुग

14 x 71 x 4320000 = 4,294,080,000 वर्ष

4,320,000,000 – 4,294,080,000 =25,920,000 वर्ष

25,920,000 वर्ष की कमी युगों के बीच संधिकाल से पूरी की गई हैं।

1 कलियुग = 432000 सौर वर्ष!

एक कलियुग की लंबाई एक युग की होती है।

युग = 25,920,000 ÷ 432000 = 60

कलियुग एक युग के बराबर हैं और महायुग कलयुग का दस गुना हैं।

ब्रह्मा का 1 दिन = 14 मन्वंतर + संधिकाल

= 994 महायुग + 60 युग

= 994 महायुग + 6 महायुग = 1000

ब्रह्मा का 1 दिन = 1000 महायुग = 4,320,000,000 मानव वर्ष

ब्रह्म का 1 रात= 1000 महायुग = 4,320,000,000 मानव वर्ष

ब्रह्म का 1 पूरा दिन = दिन + रात = 8,640,000,000 वर्ष = 8.64 अरब वर्ष।

वर्तमान 7वें मन्वन्तर में हैं।

ब्रह्मा कितने वर्ष बीत चुके हैं :

6 मन्वन्तरों = 71x 6 = 426 महायुग

सूर्य मंडल के परमेष्ठी मंडल (आकाश गंगा) के केंद्र का चक्र पूरा होने पर उसे मन्वंतर काल कहा गया।

इसका माप है 30,67,20,000 (तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्ष)। एक से दूसरे मन्वंतर के बीच 1 संध्यांश सतयुग के बराबर होता है अत: संध्यांश सहित मन्वंतर का माप हुआ 30, 84,48,000 वर्ष।

30, 84,48,000 – 30,67,20,000 = 1,728,000 वर्ष (सतयुग के बराबर)

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"I lied about my basic beliefs in order to keep a prestigious job. Now that it will be zero-cost to me, I have a few things to say."


We know that elite institutions like the one Flier was in (partial) charge of rely on irrelevant status markers like private school education, whiteness, legacy, and ability to charm an old white guy at an interview.

Harvard's discriminatory policies are becoming increasingly well known, across the political spectrum (see, e.g., the recent lawsuit on discrimination against East Asian applications.)

It's refreshing to hear a senior administrator admits to personally opposing policies that attempt to remedy these basic flaws. These are flaws that harm his institution's ability to do cutting-edge research and to serve the public.

Harvard is being eclipsed by institutions that have different ideas about how to run a 21st Century institution. Stanford, for one; the UC system; the "public Ivys".
1/ Some initial thoughts on personal moats:

Like company moats, your personal moat should be a competitive advantage that is not only durable—it should also compound over time.

Characteristics of a personal moat below:


2/ Like a company moat, you want to build career capital while you sleep.

As Andrew Chen noted:


3/ You don’t want to build a competitive advantage that is fleeting or that will get commoditized

Things that might get commoditized over time (some longer than


4/ Before the arrival of recorded music, what used to be scarce was the actual music itself — required an in-person artist.

After recorded music, the music itself became abundant and what became scarce was curation, distribution, and self space.

5/ Similarly, in careers, what used to be (more) scarce were things like ideas, money, and exclusive relationships.

In the internet economy, what has become scarce are things like specific knowledge, rare & valuable skills, and great reputations.