पुराणों के अनुसार सात ऐसी पुरियों का निर्माण किया गया है, जहां इंसान को मुक्ति प्राप्त होती है। मोक्ष यानी कि मुक्ति, जो इंसान को जीवन-मरण के चक्र से मुक्ति देती है। इन मोक्ष दायिनी पुरियों में शरीर त्यागना मनुष्य जीवन के लिए सभी मूल्यवान वस्तुओं से ऊपर है।

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1.) त्रेता युग से कलयुग तक अपनी पहचान बनाने वाले अयोध्या शहर को अथर्ववेद में ईश्वर का नगर बताया गया है। इस पवित्र नगरी के पास सरयू नदी बहती है जहां भगवान श्रीराम ने अपना मानव रूप त्याग कर वैकुण्ठ लोक की ओर प्रस्थान किया था।

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2.) पौराणिक कथा के अनुसार मथुरा को भगवान श्रीराम के सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न द्वारा खोजा गया था। यह नगरी श्राद्ध कर्म के लिए विशेष है। दूर-दूर से लोग यहां अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए आते हैं। मथुरा नगरी के पास यमुना नदी बहती है। वराह पुराण में कहा गया है कि इस नगरी में.

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जो लोग शुद्ध विचार से निवास करते हैं, वे मनुष्य के रूप में साक्षात देवता हैं।

3.) हरिद्वार दो शब्दों हरि + द्वार का मेल है। मां गंगा के किनारे बसा यह शहर दुनिया के सबसे पवित्र शहरों में से एक है। इसे पौराणिक व्याख्या में "मायापुरी" के नाम से भी पुकारा गया है।

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भोलेनाथ के जटा से निकली गंगा नदी इस शहर की पवित्रता को और भी बढ़ाती है। सदियों से लोग मोक्ष प्राप्ति के लिए हरिद्वार के दर्शन करने आते हैं।

4.) काशी, इसे बनारस या वाराणसी भी कहा जाता है। इस नगरी को गंगा नदी के साथ अन्य दो नदियां वरुणा एवं असी नदी भी यहां मौजूद हैं।

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वरुण एवं असी नदी के मेल से ही इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा। चार वेदों में से एक वेद ऋग्वेद में काशी का वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार काशी को शिव की नगरी कहा जाता है। यह नगरी भगवान शिव के सबसे प्रिय स्थानों में से एक मानी गई है।

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5.) कांचीपुरम तीर्थपुरी दक्षिण की काशी मानी जाती है। कांचीपुरम या पौराणिक कथाओं के अनुसार कांची को सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा द्वारा निर्मित जाना जाता है। इस शहर का भारतीय इतिहास में भी एक विशाल योगदान है। यहां सम्राट अशोक से लेकर मौर्य परिवार ने राज किया।

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6.) उज्जैन का प्राचीनतम नाम अवन्तिका है जिसे अवन्ति नामक राजा के नाम पर रखा गया था। प्राचीन काल में उज्जयिनी महाराज विक्रमादित्य की राजधानी थी। भारतीय ज्योतिष शास्त्र में देशान्तर की शून्य रेखा उज्जयिनी से प्रारम्भ हुई मानी जाती है।

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इसे कालिदास की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ हर 12 वर्ष पर सिंहस्थ कुंभ मेला लगता है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक महाकाल इस नगरी में स्थित है।

7.) द्वारका नगरी को स्वयं भगवान कृष्ण द्वारा ही बनवाया गया था। इसका प्राचीन नाम कुशस्थली था।

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हरिवंश पुराण में भी द्वारका नगरी का वर्णन किया गया है जहां बताया है कि यह वह स्थान है जहां यादव कुल ने एक पवित्र नगरी का निर्माण किया था। विष्णु पुराण में भी द्वारका नगरी के स्थापित होने की बात कही गई है।

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1. Mini Thread on Conflicts of Interest involving the authors of the Nature Toilet Paper:
https://t.co/VUYbsKGncx
Kristian G. Andersen
Andrew Rambaut
Ian Lipkin
Edward C. Holmes
Robert F. Garry

2. Thanks to @newboxer007 for forwarding the link to the research by an Australian in Taiwan (not on

3. K.Andersen didn't mention "competing interests"
Only Garry listed Zalgen Labs, which we will look at later.
In acknowledgements, Michael Farzan, Wellcome Trust, NIH, ERC & ARC are mentioned.
Author affiliations listed as usual.
Note the 328 Citations!
https://t.co/nmOeohM89Q


4. Kristian Andersen (1)
Andersen worked with USAMRIID & Fort Detrick scientists on research, with Robert Garry, Jens Kuhn & Sina Bavari among


5. Kristian Andersen (2)
Works at Scripps Research Institute, which WAS in serious financial trouble, haemorrhaging 20 million $ a year.
But just when the first virus cases were emerging, they received great news.
They issued a press release dated November 27, 2019:

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प्राचीन काल में गाधि नामक एक राजा थे।उनकी सत्यवती नाम की एक पुत्री थी।राजा गाधि ने अपनी पुत्री का विवाह महर्षि भृगु के पुत्र से करवा दिया।महर्षि भृगु इस विवाह से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होने अपनी पुत्रवधु को आशीर्वाद देकर उसे कोई भी वर मांगने को कहा।


सत्यवती ने महर्षि भृगु से अपने तथा अपनी माता के लिए पुत्र का वरदान मांगा।ये जानकर महर्षि भृगु ने यज्ञ किया और तत्पश्चात सत्यवती और उसकी माता को अलग-अलग प्रकार के दो चरू (यज्ञ के लिए पकाया हुआ अन्न) दिए और कहा कि ऋतु स्नान के बाद तुम्हारी माता पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन...

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भृगु ऋषि सत्यवती से कहते हैं,"पुत्री तुम्हारा और तुम्हारी माता ने एक दुसरे के चरू खा लिए हैं।इस कारण तुम्हारा पुत्र ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रिय सा आचरण करेगा और तुम्हारी माता का पुत्र क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण सा आचरण करेगा।"
इस पर सत्यवती ने भृगु ऋषि से बड़ी विनती की।


सत्यवती ने कहा,"मुझे आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण सा ही आचरण करे।"तब महर्षि ने उसे ये आशीर्वाद दे दिया कि उसका पुत्र ब्राह्मण सा ही आचरण करेगा किन्तु उसका पौत्र क्षत्रियों सा व्यवहार करेगा। सत्यवती का एक पुत्र हुआ जिसका नाम जम्दाग्नि था जो सप्त ऋषियों में से एक हैं।