#Thread
भगवदपाद जगद्गुरु आदिशंकराचार्य की जयंती वैशाख शुक्ल पक्ष पंचमी विक्रम सम्वत २०७८ तदानुसार 17 मई 2021,सोमवार*
पढ़िए उनके बारे में...
1/n

साक्षात् शंकर के अवतार, युगद्रष्टा, महान् व्यक्तित्व, धर्मज्ञ, समाज-सुधारक, दार्शनिक, कवि, साहित्यकार, योगी, भक्त, गुरु, कर्मनिष्ठ, विभिन्न सम्प्रदायों एवं मतों के समन्वयकर्ता, अद्वैतवाद, शुद्धाद्वैतवाद और निर्गुण ब्रह्म सगुण-साकार भक्ति के ज्ञाता
2/n
'ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या'' के उद्घोषक शांकर पीठों व दशनामी अखाड़ों के निर्माता, कुम्भ व्यवस्था के उद्घोषक, द्वादश ज्योतिर्लिंगों के व्यवस्थापक, 180 से अधिक रचनाओं जैसे प्रस्थानत्रयी (उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता) पर भाष्य तथा अद्वैतवेदान्त के अनेक मौलिक ग्रंथों एवं
3/n
स्तोत्रों के रचयिता तथा अवैदिक मत-मतांतरवालों को शास्त्रार्थ के माध्यम से परास्त करनेवाले भगवत्पाद श्री आदि शंकराचार्य की जयंती, वैशाख शुक्ल पंचमी विक्रम संवत २०७८ (17 मई 2021) के अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएँ।
आद्यगुरू शंकराचार्य ने आठ वर्ष की आयु में गृहस्थ जीवन त्याग
4/n
सन्यास का रास्ता चुना व पैदल भारत भ्रमण कर सनातन वैदिक धर्म की पुनर्स्थापना की।उन्होंने अद्वैतवाद का प्रचार कर देश के चारों कोनों में पीठों की स्थापना कर हिंदू धर्म की ध्वजा दुनिया भर में फहराई। आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार भी कहा जाता है। 32 वर्ष की अल्पआयु में जगद्गुरु
5/n
आदिशंकराचार्य ने मोक्ष प्राप्त किया।
आद्य शंकराचार्य:
श्रीमज्जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य और शंकराचार्य-परम्परा
भारत में वैदिक धर्म के पुनर्जागरण के इतिहास में भगवत्पाद जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य का नाम सर्वोपरि है। आद्य शंकराचार्य के महान् व्यक्तित्व में धर्म-सुधारक, समाज-सुधारक,
6/n
दार्शनिक, कवि, साहित्यकार, योगी, भक्त, गुरु, कर्मनिष्ठ, विभिन्न सम्प्रदायों एवं मतों के समन्वयकर्त्ता-जैसे रूप समाहित थे। उनका महान् व्यक्तित्व सत्य के लिए सर्वस्व का त्याग करनेवाला था। उन्होंने शास्त्रीय ज्ञान की प्राप्ति के साथ ब्रह्मत्व का भी अनुभव किया था।
7/n
उनके व्यक्तित्व में अद्वैतवाद, शुद्धाद्वैतवाद, विशिष्टाद्वैतवाद और निर्गुण ब्रह्म के साथ सगुण-साकार की भक्ति की धाराएँ समाहित थीं। ‘जीव ही ब्रह्म है, अन्य नहीं’ पर जोर देनेवाले आदि शंकराचार्य ने ‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या’ का उद्धोष किया और बताया कि अद्वैत ज्ञान ही सभी
8/n
साधनाओं की परम उपलब्धि है। उन्होंने अपने अकाट्य तर्क से शैव, शाक्त और वैष्णवों का द्वंद्व समाप्त कर पञ्चदेवोपासना का मार्ग दिखाया। कुछ विद्वान् शंकराचार्य पर बौद्ध शून्यवाद का प्रभाव देखते हैं।
9/n
आचार्य शंकर में मायावाद पर महायान बौद्ध चिन्तन का प्रभाव मानकर उनको ‘प्रच्छन्न बुद्ध’ कहा गया। आचार्य शंकर के उपदेश आत्मा और पमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं।
10/n
आचार्य शंकर ने मात्र 32 वर्ष की अल्पायु में देश को एकसूत्र में पिरोने और वैदिक धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए जितना कार्य किया, वह अनुपम है। उनके समस्त कार्यों का मूल्यांकन करना लेखनी के वश की बात नहीं है।
11/n
देश के चार स्थानों पर मठों की स्थापना करके वहाँ ‘शंकराचार्य’ की नियुक्ति; दशनामी संन्यासियों का संगठन बनाकर उनके लिए अखाड़ों और महामण्डलेश्वर की व्यवस्था; कुम्भ-मेलों और द्वादश ज्योतिर्लिंगों का व्यवस्थापन; प्रस्थानत्रयी (उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र और भगवद्गीता) पर भाष्य तथा
12/n
अद्वैतवेदान्त के अनेक मौलिक ग्रंथों एवं स्तोत्रों की रचना तथा अवैदिक मत-मतांतरवाले अनेक विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित करके सनातन-धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा-जैसे अनेक कार्य शंकराचार्य को एक लौकिक मानव से ऊपर अलौकिक की श्रेणी में प्रतिष्ठित करते हैं।
शांकर मठ परम्परा :
13/n
जगदगुरु आद्य शंकराचार्य ने सनातन-धर्म के प्रचार-प्रसार, गुरु-शिष्य परम्परा के निर्वहन, शिक्षा, उपदेश और संन्यासियों के प्रशिक्षण और दीक्षा, आदि के लिए देश के भिन्न-भिन्न स्थानों पर 4 मठों या पीठों की स्थापना की और वहाँ के मठाध्यक्ष (मठाधीश, महंत, पीठाधीश, पीठाध्यक्ष) को
14/n
‘शंकराचार्य’ की उपाधि दी। इस प्रकार ये मठाधीश, आद्य शंकराचार्य के प्रतिनिधि माने जाते हैं और ये प्रतीक-चिह्न, दण्ड, छत्र, चँवर और सिंहासन धारण करते हैं। ये अपने जीवनकाल में ही अपने सबसे योग्य शिष्य को उत्तराधिकारी घोषित कर देते हैं। यह उल्लेखनीय है कि
15/n
आद्य शंकराचार्य से पूर्व ऐसी मठ-परम्परा का संकेत नहीं मिलता। आद्य शंकराचार्य ने ही यह महान् परम्परा की नींव रखी थी। इसलिए ‘शंकराचार्य’ हिंदू-धर्म में सर्वोच्च धर्मगुरु का पद है जो कि बौद्ध-सम्प्रदाय में ‘परमपावन दलाईलामा’ एवं ईसाइयत में ‘पोप’ के समकक्ष है।
16/n
आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों को शांकर मठ भी कहा जाता है। इन मठों में संन्यास लेने के बाद दीक्षा लेनेवाले संन्यासी के नाम के बाद एक विशेषण लगा दिया जाता है जिससे यह संकेत मिलता है कि यह संन्यासी किस मठ से है और वेद की किस परम्परा का वाहक है।
17/n
सभी मठ अलग-अलग वेद के प्रचारक होते हैं और इनका एक विशेष महावाक्य होता है। इनका विवरण इस प्रकार है :

•ज्योतिर्मठ— यह मठ उत्तराखण्ड के बद्रीकाश्रम में है। इस मठ की स्थापना सर्वप्रथम, 492 ई.पू. में हुई। यहाँ दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ और ‘सागर’
18/n
विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस पीठ का महावाक्य ‘अयमात्म ब्रह्म’ है। यहाँ अथर्ववेद-परम्परा का पालन किया जाता है। आद्य शंकराचार्य ने तोटकाचार्य इस पीठ का प्रथम शंकराचार्य नियुक्त किया था।
19/n
वर्तमान में स्वामी स्वरूपानंद जी सरस्वती इस पीठ के अध्यक्ष हैं।

• शृंगेरी शारदा मठ— यह मठ कर्नाटक के शृंगेरी में अवस्थित है। इस मठ की स्थापना 490 ई.पू. में हुई। यहाँ दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘सरस्वती’, ‘भारती’, ‘पुरी’ नामक विशेषण लगाया जाता है।
20/n
इस मठ का महावाक्य ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है। यहाँ यजुर्वेद-परम्परा का पालन किया जाता है। सुरेश्वराचार्य (मण्डन मिश्र) यहाँ के प्रथम शंकराचार्य नियुक्त किए गए थे। सम्प्रति स्वामी भारती तीर्थ महास्वामी इस पीठ के शंकराचार्य हैं।
21/n
• द्वारका शारदा मठ— यह मठ गुजरात के द्वारका में अवस्थित है। इस मठ की स्थापना 489 ई.पू. में हुई। इस मठ में दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ विशेषण लगाया जाता है।
यहाँ का वेद सामवेद और महावाक्य ‘तत्त्वमसि’ है।
22/n
इस मठ के प्रथम शंकराचार्य हस्तामालकाचार्य थे। हस्तामलक आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे। वर्तमान में स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती इसके 79वें मठाधीश हैं।

• गोवर्धन मठ— यह ओड़ीशा के जगन्नाथपुरी में है। इस मठ की स्थापना 486 ई.पू. में हुई।

23/n
इस मठ में दीक्षा लेनेवाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘आरण्य’ विशेषण लगाया जाता है। यहाँ का वेद ऋग्वेद है। इस मठ का महावाक्य ‘प्रज्ञानम् ब्रह्म’ है। आद्य शंकराचार्य ने अपने प्रथम शिष्य पद्मपादाचार्य को इस मठ का प्रथम शंकराचार्य नियुक्त किया था।
24/n
सम्प्रति स्वामी निश्चलानन्द सरस्वती यहाँ के 145वें शंकराचार्य हैं।
बाकी मैं मूढ़-अज्ञानी, भगवान शंकराचार्य के बारे में कुछ लिख सकूँ इतना ज्ञानी नही क्योंकि उनका ज्ञान अथाह समुद्र से भी गहरा है, हम उनपर व हमारे सनातन धर्म पर गर्व करते हैं।
जय जय शंकर !!🍀🌹🌸🌷🌼🌻🌺🍂☀
25/n
आद्यशंकराचार्य जी और उनके द्वारा स्थापित मठों पर कुछ जानकारी देने का एक प्रयास किया है, कोई त्रुटि हो गयी हो तो पाठक क्षमा करें।
जगतगुरु को नमन।

"वन्दे महापुरुष ते चरणारविन्दम'
26/n.

More from All

APIs in general are so powerful.

Best 5 public APIs you can use to build your next project:

1. Number Verification API

A RESTful JSON API for national and international phone number validation.

🔗
https://t.co/fzBmCMFdIj


2. OpenAI API

ChatGPT is an outstanding tool. Build your own API applications with OpenAI API.

🔗 https://t.co/TVnTciMpML


3. Currency Data API

Currency Data API provides a simple REST API with real-time and historical exchange rates for 168 world currencies

🔗 https://t.co/TRj35IUUec


4. Weather API

Real-Time & historical world weather data API.

Retrieve instant, accurate weather information for
any location in the world in lightweight JSON format.

🔗 https://t.co/DCY8kXqVIK

You May Also Like