गोरा और बादल दो वीरों के नाम जिनके पराक्रम से राजस्थान की मिट्टी बलिदानी है।
रिश्ते में चाचा भतीजा लगने वाले दोनों वीर जालोर के चौहान वंश से संबंध रखते थे जो रानी पद्मिनी के विवाह के बाद चितौड़गढ़ के राजा रावल रतनसिंह के राज्य का हिस्सा बन गए थे।
उनकी वीरता को देख कर रत्न सिंह ने उन्हें चितौड़गढ़ की सेना में शामिल कर लिया।
जब खिलजी ने धोखे से रतन सिंह को बंदी बना लिया और शर्त रख दी की रावल को तभी आज़ाद किया जाएगा जब रानी पद्मिनी को खिलजी के पास भेजा जाएगा।
ये सुनकर राजपूत क्रोधित हो उठे लेकिन पद्मिनी ने उन्हें संयम रखने
की सलाह दी।
रणनीति के तहत रानी ने खिलजी को पत्र भेजकर शर्त की रखी की उनके साथ उनकी हजारों दासिया भी आएंगी।
उन पालकियों में चुने हुए राजपूत योद्धा थे जिनका नेतृत्व रानी की पालकी में बैठे गोरा बादल कर रहे थे।
खिलजी ने रानी की पालकी को रतन सिंह से मिलने की अनुमति दे दी।
जैसे ही पालकी तम्बू में पहुंची,उसमे बैठे गोरा ने रावल को घोड़े पर तुरंत रवाना कर दिया। और योद्धाओं ने खिलजी सेना पर हमला कर दिया,जिससे पहले खिलजी कुछ समझ पाता,रत्न सिंह को दुर्ग में सुरक्षित भेज दिया गया।
गोरा और बादल वीरो की तरह दुश्मनों से लड़ते रहे और अदम्य साहस का परिचय देते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए।
कहा जाता है उनका सिर कट गया लेकिन धड खिलजी की सेना से लड़ता रहा।
ऐसे वीरों को कोटि कोटि नमन।