SriramKannan77 Authors Vibhu Vashisth

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अयोध्या में प्रभु श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का शिलान्यास करने के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वहां परिजात का पौधा लगाया। पौधारोपण के महत्व को उन्होंने बड़ी ही सहजता से सबको बता दिया। हमारे शास्त्रों में भी एक पेड़ लगाना और उसकी देखभाल करना सौ गायों का दान देने...


...के समान माना गया है। उस पर परिजात जैसा अति लाभदायक पौधा तो गुणों की खान है। हमारे शास्त्रों में परिजात को अत्यंत शुभ और पवित्र वृक्ष की श्रेणी में रखा गया है। इस वृक्ष की विशेषता है कि इसमें काफी मात्रा में फूल खिलते हैं। ये फूल सूर्यास्त के बाद खिलना शुरू होते हैं तथा


सूर्य के आगमन के साथ ही सारे फूल जमीन पर झर जाते हैं। अगले दिन यह फिर फूलों से सज जाता है। परिजात की उत्पत्ति के विषय में एक कथा है कि इसका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था जिसे इंद्र ने स्वर्ग ले जाकर अपनी वाटिका में रोप दिया था।


मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए भी परिजात के फूलों का प्रयोग किया जाता है। पुराणों में बताते हैं कि इसके वृक्ष को छूने भर से थकान मिनटों में गायब हो जाती है तथा शरीर पुन: स्फूर्ति प्राप्त कर लेता है। इस दैवीय वृक्ष से भगवान श्रीकृष्ण तथा रुक्मिणी की प्रेम कहानी भी जुड़ी है।

पारिजात एक खूबसूरत और सुगंधित पुष्प होता है जिसे हारसिंगार भी कहा जाता है और इसे आप अपने घर की बालकोनी में भी बड़े आराम से लगा सकते हैं।इसे कूरी,सिहारु,सेओली,प्राजक्ता, शेफालिका,शेफाली,शिउली और अंग्रेजी में ट्री ऑफ सैडनेस (Tree of sadness), मस्क फ्लॉवर (Musk flower),..
पौराणिक काल की बात है | भगवान श्री गणेश गंगा के तट पर भगवान विष्णु के ध्यान में मग्न थे | गले में सुन्दर माला , शरीर पर चन्दन लिपटा हुआ था और वे रत्न जडित सिंहासन पर विराजित थे | उनके मुख पर करोडों सूर्यों का तेज चमक रहा था |


इस तेज को धर्मात्मज की युवा कन्या तुलसी ने देखा और वे पूरी तरह गणेश जी पर मोहित हो गयी | तुलसी स्वयं भी भगवान विष्णु की परम भक्त थी| उन्हें लगा की यह मोहित करने वाले दर्शन हरि की इच्छा से ही हुए हैं | उसने गणेश से विवाह करने की इच्छा प्रकट की |


भगवान गणेश ने कहा कि वह ब्रम्हचर्य जीवन व्यतीत कर रहे हैं और विवाह के बारे में अभी बिलकुल नहीं सोच सकते | विवाह करने से उनके जीवन में ध्यान और तप में कमी आ सकती है | इस तरह सीधे सीधे शब्दों में गणेश ने तुलसी के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया |

धर्मात्मज पुत्री तुलसी यह सहन नही कर सकी और उन्होंने क्रोध में आकर उमापुत्र गजानंद को श्राप दे दिया की उनकी शादी तो जरुर होगी और वो भी उनकी इच्छा के विरुद्ध ।

ऐसे वचन सुनकर गणेशजी भी क्रोधित हो उठे।गणेश जी ने उन्हें श्राप दे दिया कि तेरा विवाह एक असुर शंखचूड़ जलंधर से होगा।


राक्षस से विवाह का श्राप सुनकर तुलसी विलाप करने लगी और गणेश जी से माफी मागी। दया के सागर भगवान गणेश ने उन्हें माफ कर दिया पर कहा कि मैं श्राप वापस तो नहीं ले सकता पर मैं तुम्हें एक वरदान देता हूँ।
🌺अट्ठारह पुराणों का संक्षिप्त परिचय🌺
पुराण शब्द का अर्थ ही है प्राचीन कथा, पुराण विश्व साहित्य के सबसे प्राचीन ग्रँथ हैं, उन में लिखित ज्ञान और नैतिकता की बातें आज भी प्रासंगिक, अमूल्य तथा मानव सभ्यता की आधारशिला हैं, वेदों की भाषा तथा शैली कठिन है,...

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...पुराण उसी ज्ञान के सहज तथा रोचक संस्करण हैं।
उन में जटिल तथ्यों को कथाओं के माध्यम से समझाया गया है, पुराणों का विषय नैतिकता,विचार,भूगोल,खगोल, राजनीति,संस्कृति,सामाजिक परम्परायें,विज्ञान तथा अन्य बहुत से विषय हैं, विशेष तथ्य यह है कि पुराणों में देवी-देवताओं,राजाओं,...

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..और ऋषि-मुनियों के साथ साथ जन साधारण की कथाओं का भी उल्लेख किया गया हैं,जिससे पौराणिक काल के सभी पहलूओं का चित्रण मिलता है।
महृर्षि वेदव्यासजी ने अट्ठारह पुराणों का संस्कृत भाषा में संकलन किया है, ब्रह्मदेव,श्रीविष्णु भगवान् तथा भगवान् महेश्वर उन पुराणों के मुख्य देव हैं,..

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..त्रिमूर्ति के प्रत्येक भगवान स्वरूप को छः पुराण समर्पित किये गये हैं, इन अट्ठारह पुराणों के अतिरिक्त सोलह उप-पुराण भी हैं।
पुराणों का संक्षिप्त परिचय:

🌺ब्रह्म पुराण🌺

ब्रह्मपुराण सब से प्राचीन है, इस पुराण में दो सौ छियालीस अध्याय तथा चौदह हजार श्र्लोक हैं,...

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...इस ग्रंथ में ब्रह्माजी की महानता के अतिरिक्त सृष्टि की उत्पत्ति, गंगा अवतरण तथा रामायण और कृष्णावतार की कथायें भी संकलित हैं, इस ग्रंथ में सृष्टि की उत्पत्ति से लेकर सिन्धु घाटी सभ्यता तक की कुछ ना कुछ जानकारी प्राप्त की जा सकती है।

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आपस में लड़ना छोड़ो और ये पढ़ो

🌎जो हिन्दू इस घमंड मे जी रहे है कि अरबों सालों से सनातन धर्म है और इसे कोई नहीं मिटा सकता,.

..मैं उनसे केवल इतना विनम्र अनुरोध करता हूँ कि नीचे लिखे तथ्यों को एक बार ध्यान से अवश्य पढ़ें:

🌍आखिर अफ़ग़ानिस्तान से हिन्दु क्यों मिट गया?

🌎"काबुल" जो भगवान राम के पुत्र कुश का बनाया शहर था, आज वहाँ एक भी मंदिर नहीं बचा।

🌎"गांधार" जिसका विवरण महाभारत में है, जहां की रानी गांधारी थी, आज उसका नाम कंधार हो चुका है, और वहाँ आज एक भी हिन्दू नहीं बचा l

🌎"कम्बोडिया" जहां राजा सूर्य देव बर्मन ने दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर "अंकोरवाट" बनाया, आज वहाँ भी हिन्दू नहीं है l

🌎"बाली द्वीप" में 20 साल पहले तक 90% हिन्दू थे,आज सिर्फ 20% बचे हैं l

🌎"कश्मीर घाटी" में सिर्फ 25 साल पहले 50% हिंदू थे,आज एक भी हिन्दू नहीं बचाl

🌎"केरल" में 10 साल पहले तक 60% जनसंख्या हिन्दुओं की थी, आज सिर्फ 10% हिन्दू केरल में हैं l

🌎"नोर्थ ईस्ट" जैसे सिक्किम, नागालैंड, आसाम आदि में हिन्दू हर रोज मारे या भगाए जाते हैं, या उनका धर्म परिवर्तन हो रहा है l
🌺एक संक्षिप्त,सुन्दर एवं सार्थक कथा🌺

बहुत पुरानी बात है,किसी कल्प में पृथ्वी के एक नगर में एक जुआरी रहता था।वो स्वभाव से ही नास्तिक था तथा वेदों व शास्त्रों की निंदा करता था।एक दिन उसने जुए में बहुत सारा धन जीत लिया था।


धन के मद में चूर वो उस रात पान, फूल,सुगंध लेकर नगर की सबसे महंगी और खूबसूरत वैश्या के पास जा रहा था। एक उजाड़ मार्ग पे उसे ठोकर लगी, उसका सिर एक पत्थर से टकरा गया और वो मूर्च्छित हो गया।

उस स्थान पर शिवलिंग था। मूर्छित होने पर उसके हाथ के फूल,सुगंध शिवलिंग पर अनजाने तरीके से अर्पित हो गए।वहीं पर उस जुआरी की मौत हो गई। मौत के बाद यमराज के दूत आये और उसे पाश में जकड़ कर यमपुर ले गए।


वहां चित्रगुप्त ने उसके कर्मों का लेखा-जोखा देखकर कहा कि इसने तो पाप ही पाप किए हैं,लेकिन मरते समय इसने जुए के पैसे से वेश्या के लिए खरीदे पुष्प,गंध अनजाने रूप से ‘शिवार्पण’ कर दिए।ये ही एकमात्र इसका पुण्य है। चित्रगुप्त की बात सुनकर यमराज ने उससे पूछा कि हे पापी,तू ही बता कि...


...पहले पाप का फल भोगेगा या पुण्य का।
जुआरी बोला की पाप के तो बहुत फल भोगने पड़ेंगे, पहले पुण्य का ही फल भोग लूं। तो उस एक पुण्य के बदले उसे दो घड़ी के लिए इन्द्र बनाया गया।
यमराज स्वर्ग पहुंचे और उन्होने दो घड़ी के लिए अपने पद से इन्द्र को त्यागपत्र देने को कहा।
क्या यह आधुनिक तकनीकों वाला युग नींव खोदे बिना एक गगनचुंबी इमारत के निर्माण की कल्पना कर सकता है ?

यह तमिलनाडु का बृहदेश्वर मंदिर है, यह बिना नींव का मंदिर है । इसे इंटरलॉकिंग विधि का उपयोग करके बनाया गया है इसके निर्माण में पत्थरों के बीच कोई सीमेंट,..


..प्लास्टर या किसी भी तरह के चिपकने वाले पदार्थों का प्रयोग नहीं किया गया है इसके बावजूद पिछले 1000 वर्षों में 6 बड़े भूकंपो को झेलकर भी आज अपने मूल स्वरूप में है ।

216 फीट ऊंचा यह मंदिर उस समय दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर था।


इसके निर्माण के कई वर्षों बाद बनी पीसा की मीनार खराब इंजीनियरिंग की वजह से समय के साथ झुक रही है लेकिन बृहदेश्वर मंदिर पीसा की मीनार से भी प्राचीन होने के बाद भी अपने अक्ष पर एक भी अंश का झुकाव नहीं रखता।


इस मंदिर के निर्माण के लिए 1.3 लाख टन ग्रेनाइट का उपयोग किया गया था जिसे 60 किलोमीटर दूर से 3000 हाथियों द्वारा ले जाया गया था। इस मंदिर का निर्माण पृथ्वी को खोदे बिना किया गया था यानी यह मंदिर बिना नींव का मंदिर है ।


मंदिर टॉवर के शीर्ष पर स्थित शिखर का वजन 81 टन है आज के समय में इतनी ऊंचाई पर 81 टन वजनी पत्थर को उठाने के लिए आधुनिक मशीनें फेल हो जाएंगी ।
🌺श्री कृष्ण और स्यांतक मणी की कहानी🌺

एक बार भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ हस्तिनापुर गए। उनके हस्तिनापुर चले जाने के बाद अक्रूर और कृतवर्मा ने शतधन्वा को स्यमंतक मणि छीनने के लिए उकसाया। शतधन्वा बड़े दुष्ट और पापी स्वभाव का मनुष्य था।


अक्रूर और कृतवर्मा के बहकाने पर उसने लोभवश सोए हुए सत्राजित को मौत के घाट उतार दिया और मणि लेकर वहाँ से चला गया। शतधन्वा द्वारा अपने पिता के मारे जाने का समाचार सुनकर सत्यभामा शोकातुर होकर रोने लगी।

फिर भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कर उसने यह प्रतिज्ञा की कि जब तक श्रीकृष्ण शतधन्वा का वध नहीं कर देंगे, वह अपने पिता का दाह-संस्कार नहीं होने देगी। इसके बाद उसने हस्तिनापुर जाकर श्रीकृष्ण को सारी घटना से अवगत कराया।वे उसी समय सत्यभामा और बलरामजी के साथ हस्तिनापुर से द्वारिका लौट आए।

द्वारिका पहुँचकर उन्होंने शतधन्वा को बंदी बनाने का आदेश दे दिया। जब शतधन्वा को ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण ने उसे बंदी बनाने का आदेश दे दिया है तो वह भयभीत होकर कृतवर्मा और अक्रूर के पास गया और उनसे सहायता की प्रार्थना की। किंतु उन्होंने सहायता करने से इंकार कर दिया।

तब उसने स्यमंतक मणि अक्रूर को सौंप दी और अश्व पर सवार होकर द्वारिका से भाग निकला।
श्रीकृष्ण व बलराम को उसके भागने की सूचना मिली।अतः उसका वध करने के लिए वे रथ पर सवार होकर उसका पीछा करने लगे।उन्हें पीछे आते देख शतधन्वा भयभीत होकर अश्व से कूद गया व पैदल ही वन की ओर दौड़ने लगा।